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जनता के “नेताजी”

नरेंद्र सिंह, समाजसेवी (गोण्डा)।

संघर्ष, समाजवाद और सत्ता की कहानी
निश्चय टाइम्स, लखनऊ। भारतीय राजनीति के दिग्गज नेताओं में शामिल समाजवादी पार्टी के संस्थापक एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को उनके चाहने वाले यूँ ही नहीं धरतीपुत्र कहते हैं। मुलायम सिंह को मिली “धरती पुत्र” की इस उपाधि के बारे में जानने के लिए उनके राजनीतिक जीवन पर रोशनी डालना जरूरी है। नेता जी में बचपन से क्रांतिकारियों वाला गुण मौजूद था और इसकी पुष्टि यह बात करती है कि वह महज 14 साल की उम्र में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ निकाली गई रैली में शामिल हो गए थे। बचपन का उनका यह स्वभाव उन्हें राजनीति का चमकता सितारा बना देगा, यह बात उन्हें भी पता नहीं थी। 22 नवंबर 1939 को इटावा जिले के सैफई गांव में जन्मे मुलायम सिंह यादव ने साधारण किसान परिवार से निकलकर भारतीय राजनीति के सर्वोच्च शिखर तक पहुँचने की ऐतिहासिक यात्रा तय की। उनका पूरा जीवन संघर्ष, सरलता, समाजवाद के मूल्यों और जनता के मुद्दों को आवाज़ देने के लिए समर्पित रहा। जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए आंदोलन का एक हिस्सा होने के कारण, मुलायम सिंह यादव को 1975 में देश में इमरजेंसी के दौरान मीसा के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाला गया था। जेपी के विचारों ने समाजवादी विचारधारा पर आधारित मुलायम सिंह यादव की सोच को एक नया आकार दिया और 1977 में जनता पार्टी के गठन में भी उन्होंने योगदान दिया, जिससे मुलायम सिंह यादव को मंत्री बनने का अवसर मिला। 
मुलायम सिंह यादव के पिता सुघर सिंह किसान थे और माता मूर्ति देवी एक घरेलू महिला। साधारण परिवेश में पले-बढ़े मुलायम सिंह ने बचपन से ही जीवन की कठिनाइयों का सामना किया और इन्हीं अनुभवों ने आगे चलकर उन्हें आम लोगों के हितों की राजनीति करने की प्रेरणा दी। वह शिक्षा के साथ कुश्ती के मैदान में भी सक्रिय रहे और दांव-पेंच में माहिर होने के कारण जनता से उनका जुड़ाव मैदान से लेकर मंच तक मज़बूती से बना रहा। छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय होते हुए वर्ष 1962 में उन्होंने छात्र संघ चुनाव लड़ा और अध्यक्ष बने। इसी दौरान उनका संपर्क उनके राजनीतिक गुरु चौधरी नत्थू सिंह से हुआ, जिन्होंने उन्हें समाजवादी विचारधारा से जोड़ा।

28 वर्ष की आयु में विधायक

मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक सफर की वास्तविक शुरुआत वर्ष 1967 के विधानसभा चुनाव से की। महज 28 वर्ष की उम्र में वह जसवंतनगर से पहली बार विधायक चुने गए। यह शुरुआती जीत आने वाले सशक्त राजनीतिक इतिहास की नींव थी।साल 1977 में वह यूपी सरकार में मंत्री बने और 1980 के दशक में उनकी सियासी पकड़ तेजी से मजबूत होती गई। 1982 में वे यूपी विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बने। समाजवादी विचारधारा को मजबूती देते हुए उन्होंने जनमानस में अपनी छवि एक संघर्षशील, जननायक के रूप में स्थापित की।

तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री

मुलायम सिंह यादव का सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक दौर 1989 में आया, जब वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी की स्थापना की जिसने उत्तर प्रदेश की राजनीति को नया आयाम दिया। 1993 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सहयोग से दोबारा सत्ता में वापसी की। मुश्किल चुनौतियों के बीच उनकी संगठन क्षमता और राजनीतिक संतुलन ने उन्हें सत्ता तक पहुँचाया।
साल 2003 में मुलायम सिंह यादव तीसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने। यह उनकी जनप्रियता, मजबूत नेटवर्क और प्रशासनिक क्षमता का प्रमाण था।

केंद्र की राजनीति में भी प्रभाव

प्रदेश में तीन बार मुख्यमंत्री रहने के साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराई। 1996 से 2019 तक वह सात बार लोकसभा सदस्य रहे। राष्ट्रीय स्तर पर वह रक्षा मंत्री भी रहे और अपनी स्पष्टवादी नीति के कारण राष्ट्रीय राजनीति में उनकी पहचान दृढ़ नेता की रही।

साधारण वेश, बड़ी राजनीति

मुलायम सिंह यादव के पिता चाहते थे कि उनका बेटा बड़ा पहलवान बने, और मुलायम ने भी अखाड़े में अपना खूब दमखम दिखाया। लेकिन तकदीर ने उनके लिए इससे कहीं बड़ा रास्ता चुन रखा था। साल 1962 में एक कुश्ती प्रतियोगिता के दौरान मुलायम सिंह के दांव-पेंच देखकर वहां मौजूद चौधरी नत्थू सिंह यादव बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने मुलायम को अपने संरक्षण में ले लिया और राजनीति की राह दिखाने वाले उनके पहले मार्गदर्शक बने। नत्थू सिंह ने न केवल मुलायम सिंह की मुलाकात समाजवादी आंदोलन के अग्रदूत डॉ. राम मनोहर लोहिया से करवाई, बल्कि अपने शिष्य को राजनीतिक तोहफा भी दिया—उत्तर प्रदेश की जसवंतनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का अवसर। साल 1967 के चुनाव में मुलायम सिंह ने गुरु की उम्मीदों पर खरे उतरते हुए पहली बार जीत दर्ज की। यह जीत उनके जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हुई।जसवंतनगर क्षेत्र से उनका ऐसा रिश्ता बना कि वे इस सीट से सात बार विधायक चुने गए और धीरे-धीरे यूपी की राजनीति के सबसे प्रभावशाली नेताओं में शुमार हो गए। सरल धोती-कुर्ता, सादा व्यक्तित्व और जमीन से जुड़े होने की वजह से मुलायम सिंह यादव को जनता “धरती पुत्र” कहकर सम्मान देती रही। उनकी सभाओं में उमड़ने वाली भीड़ और किसानों–कमज़ोर तबकों के लिए उनका संघर्ष ही उन्हें जननायक बनाता है। दशकों तक राजनीति की धुरी बने रहने के बाद 10 अक्टूबर 2022 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। परंतु उनके आदर्श, संघर्ष और समाजवाद का संदेश आज भी देश की राजनीति में जीवित है। मुलायम सिंह यादव का 57 वर्षों का राजनीतिक जीवन इस बात का प्रमाण है कि संकल्प, संघर्ष और जनता के हितों के प्रति समर्पण हो, तो किसान का बेटा भी राजनीति की ऊँचाइयों को छू सकता है। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत रहेगा।

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Author: ntuser1

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