रियाद। इजरायल सरकार ने कब्जे वाले गोलान हाइट्स में बस्तियों के विस्तार की योजना को मंजूरी दी है। यहूदी राष्ट्र के इस फैसले का सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और कतर ने विरोध किया है।
इजरायल द्वारा गोलान हाइट्स में बस्तियों का विस्तार करने के फैसले पर कतर, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और सऊदी अरब ने विरोध व्यक्त किया है। यह विवादित क्षेत्र सीरिया और इजरायल के बीच स्थित है, और 1967 के छह दिवसीय युद्ध के बाद इजरायल ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया था। संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस क्षेत्र को इजरायल का हिस्सा मानने से इंकार किया है, और इसे सीरिया का हिस्सा मानते हुए इस पर इजरायल की बस्तियों के विस्तार को अवैध करार दिया है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, सऊदी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि यह फैसला सीरिया की सुरक्षा और स्थिरता बहाल करने की संभावनाओं को खत्म करने की कोशिशों का हिस्सा है।
मंत्रालय ने सीरिया की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की जरुरत पर बल दिया।
कतर, यूएई और सऊदी अरब ने इजरायल के इस कदम को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन और एकतरफा कार्रवाई बताया है, जो शांति प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकती है। इन देशों का कहना है कि इजरायल का यह कदम न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डालता है, बल्कि इससे अरब देशों और इजरायल के बीच शांति स्थापित करने के प्रयासों को भी विफल कर सकता है। उनका यह भी मानना है कि इस प्रकार के कदम से फिलिस्तीनी मुद्दे और अन्य अरब देशों के साथ इजरायल के संबंधों में और अधिक तनाव उत्पन्न हो सकता है।
यूएई के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में चेतावनी दी कि इजरायल की कार्रवाई से क्षेत्र में तनाव बढ़ सकता है। इसमें कहा गया, यूएई स्पष्ट रूप से कब्जे वाले गोलान हाइट्स की कानूनी स्थिति को बदलने के उद्देश्य से किए गए सभी फैसलों और कामों को अस्वीकार करता है।
बयान में इस बात पर जोर दिया गया कि गोलान हाइट्स में इजरायली बस्तियों का विस्तार सीरिया की सुरक्षा, स्थिरता और संप्रभुता के लिए सीधा खतरा है।
कतर के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में इस फैसले को सीरियाई क्षेत्रों पर इजरायली आक्रमणों की श्रृंखला में एक नया प्रकरण और अंतरराष्ट्रीय कानून का घोर उल्लंघन बताया। इसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि वह इजरायल को सीरियाई क्षेत्रों पर अपने हमलों को रोकने औरअपनी कानूनी और नैतिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए दबाव डाले।
बयान में सीरिया की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए कतर के अटूट समर्थन को दोहराया गया।
कतर ने अपनी आधिकारिक प्रतिक्रिया में कहा कि इजरायल का यह कदम कड़ी आलोचना का पात्र है, और इसके परिणामस्वरूप शांति के लिए किए गए प्रयासों में विघ्न आ सकता है। यूएई ने भी इस फैसले को “अन्यायपूर्ण और अवैध” करार दिया और कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। सऊदी अरब ने इस मामले में इजरायल से क्षेत्रीय कानूनों का पालन करने का आह्वान किया और इस निर्णय को गलत दिशा में एक कदम बताया।
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में यह जानकारी दी गई कि सरकार ने गोलान हाइट्स में बस्तियों के विस्तार की योजना को मंजूरी दे दी है।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी के मुताबिक रविवार को जारी बयान में कहा गया कि 10.81 मिलियन डॉलर की योजना को कैबिनेट द्वारा सर्वसम्मति से मंजूरी दी गई। इस योजना को युद्ध और सीरिया के साथ नए मोर्चे के मद्देनजर आगे बढ़ाया जा रहा है।
बयान के अनुसार, इस योजना का लक्ष्य गोलान हाइट्स में इजरायली आबादी को दोगुना करना है। इसमें एक छात्र गांव की स्थापना, नए निवासियों के लिए डेवलपमेंट प्रोग्राम और शिक्षा प्रणाली और नवीकरणीय ऊर्जा बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की पहल शामिल है।
नेतन्याहू ने रविवार को कैबिनेट बैठक की शुरुआत में योजना पर कहा, गोलान को मजबूत करना इजरायल राज्य को मजबूत करना है और यह इस समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। कहा, हम इस पर (गोलान हाइट्स पर) कब्जा बनाए रखेंगे, इसे समृद्ध बनाएंगे और इसमें बसेंगे।
1967 के 6 दिवसीय युद्ध के दौरान इजरायल ने गोलान हाइट्स के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया और अंतरराष्ट्रीय निंदा के बावजूद इस पर अपना कब्जा न सिर्फ बरकरार रखा, युद्ध के बाद इजरायली लोग इस क्षेत्र में आकर बसने लगे। इजरायल ने 1981 में गोलान हाइट्स पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने मान्यता नहीं दी है।
इस विवाद में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया भी मिश्रित रही है। जहां कुछ देशों ने इजरायल के इस फैसले का समर्थन किया, वहीं कई ने इसे नकारात्मक रूप से देखा। कतर, यूएई और सऊदी अरब का यह विरोध इजरायल और अन्य वैश्विक शक्तियों के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाता है, जो मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता स्थापित करने के प्रयासों को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना सकता है।
