दिल्ली के तातारपुर इलाके में स्थित एशिया का सबसे बड़ा रावण पुतला बाजार, जो दशहरा के उत्सव के लिए विशाल रावण के पुतले बनाने के लिए प्रसिद्ध है, इस वर्ष गंभीर संकट का सामना कर रहा है। कारीगर, जो सालों से रावण के पुतले तैयार करते आए हैं, इस बार महंगाई और पटाखों पर प्रतिबंध के कारण आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। तातारपुर का यह बाजार पहले विदेशों तक अपने पुतले निर्यात करता था, लेकिन अब यह केवल दिल्ली-एनसीआर तक सीमित हो गया है।
महंगाई का कहर
इस वर्ष महंगाई ने तातारपुर के रावण पुतला कारीगरों की कमर तोड़ दी है। पुतले बनाने में उपयोग होने वाली सामग्रियों—जैसे बांस, कागज, और तार—की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हो चुकी है। पिछले साल के मुकाबले इन सामग्रियों की कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं, जिससे पुतला निर्माण की लागत बढ़ गई है और कारीगरों का मुनाफा घट गया है।
करीब 12 साल से इस काम में लगी कारीगर लक्ष्मी का कहना है, “कोरोना से पहले हम दिन में 1200 रुपए कमा लेते थे, लेकिन अब मुश्किल से 400-500 रुपए ही कमा पाते हैं। महंगाई इतनी बढ़ गई है कि अब वही रेट नहीं चल सकते।” लक्ष्मी के अनुसार, वे पिछले 10-15 सालों से रावण के पुतले 500 रुपए प्रति फुट की दर से बेच रही हैं, जबकि महंगाई कई गुना बढ़ चुकी है।
पटाखों पर प्रतिबंध का असर
पटाखों पर लगाए गए प्रतिबंध ने भी इस कारोबार पर गहरा असर डाला है। दशहरे के उत्सव का मुख्य आकर्षण रावण के पुतलों का धूमधाम से जलाना होता है, जिसमें पटाखों की आवाजें और धुआं पूरे माहौल को रोमांचक बनाते हैं। लेकिन अब पटाखों के बिना रावण दहन का उत्सव फीका पड़ता जा रहा है। कारीगरों का मानना है कि पटाखों के बिना रावण जलाने का आनंद अधूरा हो जाता है, और यही वजह है कि रावण के पुतलों की मांग में भी भारी गिरावट देखी जा रही है।
भविष्य पर संकट के बादल
कारीगरों का कहना है कि यदि यही स्थिति बनी रही तो अगले कुछ वर्षों में यह पुरानी परंपरा पूरी तरह समाप्त हो सकती है। तातारपुर का रावण पुतला बाजार, जो कभी दशहरे के अवसर पर रौनक और धूमधाम से भरा रहता था, अब खाली पड़ा है।
एक और कारीगर ने चिंता जताते हुए कहा, “अगर महंगाई और प्रतिबंधों का यही हाल रहा तो शायद हमें यह काम बंद करना पड़ेगा। दशहरे के समय हमारी आजीविका का यही एक बड़ा स्रोत होता था, लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि गुजारा मुश्किल हो गया है।”
समाप्ति की ओर पुरानी परंपरा?
कई सालों से चले आ रहे इस पारंपरिक रावण पुतला निर्माण के काम पर अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं। महंगाई और प्रतिबंधों के कारण यह सवाल उठने लगा है कि क्या यह परंपरा आने वाले वर्षों में बनी रहेगी या खत्म हो जाएगी। तातारपुर के कारीगर अब सरकार से मदद की उम्मीद कर रहे हैं ताकि इस परंपरा को जीवित रखा जा सके और उनकी रोज़ी-रोटी सुरक्षित रह सके।

Author: Sweta Sharma
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