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आरबीआई ने जीडीपी विकास दर अनुमान को घटाकर 6.6 प्रतिशत किया

नई दिल्ली : भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के विकास दर के अनुमान को घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है। पहले यह अनुमान 6.8 प्रतिशत था, लेकिन अब आरबीआई ने विभिन्न आर्थिक परिस्थितियों और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के चलते यह पूर्वानुमान कम किया है।

आरबीआई के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए संभावित चुनौतियां जैसे कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान, उच्च महंगाई, और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में मंदी, इसके विकास दर पर प्रभाव डाल सकती हैं। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, रिज़र्व बैंक ने विकास दर को संशोधित किया है।

इस निर्णय से भारत की आर्थिक नीति और वित्तीय स्थितियों पर प्रभाव पड़ेगा, और इसके साथ ही मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के लिए आरबीआई द्वारा उठाए गए कदमों को भी देखा जाएगा।

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान भारत के जीडीपी विकास दर अनुमान को 6.6 प्रतिशत कर दिया है, जो पहले 6.8 प्रतिशत था। यह संशोधन मुख्य रूप से कुछ प्रमुख आर्थिक और वैश्विक चुनौतियों के कारण किया गया है, जिनका प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। इस निर्णय से भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की दिशा पर असर पड़ने की संभावना है।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार, जीडीपी विकास दर के अनुमान में कमी का कारण वैश्विक स्तर पर मंदी के संकेत, जैसे यूरोपीय संघ और चीन की धीमी वृद्धि दर, भारत की निर्यात गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है। देश में खाद्य और ईंधन की कीमतों में वृद्धि, विशेषकर कच्चे तेल की कीमतों में उछाल, महंगाई को बढ़ा सकती है। महंगाई की वजह से उपभोक्ता खर्च और उत्पादन पर दबाव पड़ सकता है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान, जैसे पहले कोरोना महामारी और उसके बाद की आपूर्ति बाधाएँ, ने भारतीय उद्योगों की उत्पादन क्षमता को प्रभावित किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में आय वृद्धि की दर अपेक्षाकृत धीमी है, जिससे कृषि और ग्रामीण क्षेत्र आधारित खपत में कमी आई है।

आरबीआई ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अपनी नीति में सख्त रुख बनाए रखा है। 2024 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान 5.4 प्रतिशत रखा गया है, जो अभी भी आरबीआई के निर्धारित लक्ष्य से ऊपर है (4% ± 2% का लक्ष्य)। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए, आरबीआई ने ब्याज दरों में लगातार वृद्धि की है, ताकि महंगाई को काबू में किया जा सके।

आरबीआई का मानना है कि आर्थिक सुधारों और संरचनात्मक सुधार जैसे नौकरियों का सृजन, निवेश में वृद्धि, और मांग का समर्थन से दीर्घकालिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है। इसके अलावा, मुद्रास्फीति में कमी और सार्वजनिक निवेश के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने का प्रयास जारी रहेगा।

इस समायोजन का असर मुद्रास्फीति और ब्याज दरों में बदलाव के साथ-साथ निवेश वातावरण पर भी पड़ सकता है। यदि जीडीपी वृद्धि दर धीमी रहती है, तो निवेशकों और उधारकर्ताओं को अलग तरह की रणनीति अपनानी पड़ सकती है, जिससे पूंजी प्रवाह और उपभोक्ता खर्च पर असर पड़ेगा।

इस तरह, आरबीआई का निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित कर सकता है, लेकिन दीर्घकालिक सुधारों से संभावनाएँ बनी रह सकती हैं।

Admin Desk
Author: Admin Desk

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