नई दिल्ली। सलमान रुश्दी की विवादास्पद किताब ‘द सैटेनिक वर्सेज‘ भारत में 36 साल के प्रतिबंध के बाद आखिरकार फिर से रिलीज़ हुई है। यह किताब 1988 में पहली बार प्रकाशित हुई थी और इसे लेकर विवाद का एक बड़ा तूफान खड़ा हो गया था। कई मुस्लिम संगठनों ने इस किताब को इस्लाम का अपमान मानते हुए इसका विरोध किया, जिसके कारण भारत सरकार ने 1989 में इसे प्रतिबंधित कर दिया था। इस किताब को लेकर आलोचनाओं का मुख्य कारण इसकी कथानक और पात्रों को इस्लामिक परिप्रेक्ष्य से विवादित माना गया।
इस किताब के प्रतिबंध के बावजूद, ‘द सैटेनिक वर्सेज’ ने पूरी दुनिया में साहित्यिक चर्चाएँ शुरू कर दी थीं। सलमान रुश्दी पर इसके प्रकाशन के बाद कई देशों में हिंसा और विरोध प्रदर्शन भी हुए थे। 1991 में रुश्दी को ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खोमेनी द्वारा मौत की धमकी भी दी गई थी, जिसके बाद रुश्दी को कई वर्षों तक सुरक्षा में रहना पड़ा।
भारत में इस किताब का विरोध विभिन्न मुस्लिम संगठनों द्वारा किया गया था, जो इसे धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला मानते थे। इस प्रतिबंध के चलते भारत में किताब की उपलब्धता पर प्रभाव पड़ा, लेकिन अब भारतीय किताब बाजार में इसे फिर से जारी किया गया है। इसके प्रकाशक, रैंडम हाउस इंडिया ने इसे नए संस्करण के रूप में पुनः प्रकाशित किया है। इस पुनः प्रकाशन के बाद से भारतीय पाठक अब इस किताब को खरीदने और पढ़ने के लिए स्वतंत्र होंगे।
सलमान रुश्दी की ‘द सैटेनिक वर्सेज’ का भारत में पुनः आगमन भारतीय समाज में विविधता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बहस को फिर से जागृत करेगा। इस किताब का प्रकाशन इस बात का प्रतीक है कि भारतीय समाज अब भी साहित्यिक और सांस्कृतिक विवादों को खुले तौर पर समझने और उनका समाधान ढूंढने के लिए तैयार है। हालांकि, इस किताब को लेकर विवाद और विरोध का सिलसिला समाप्त होने की बजाय जारी रह सकता है, क्योंकि यह मुद्दा धार्मिक संवेदनाओं से जुड़ा हुआ है।
रुश्दी ने इस किताब के माध्यम से इस्लाम और पश्चिमी समाज के बीच के संघर्ष, पहचान के संकट, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चर्चा की है। ‘द सैटेनिक वर्सेज’ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण रचना है।





