बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT) ने ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ के मामले में मौत की सजा सुनाई है। यह फैसला 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुई हिंसा और कई लोगों की मौत से जुड़ा हुआ है। इसके बाद हालात बदल गए हैं — बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से हसीना का प्रत्यर्पण फिर से मांगा है। सवाल यह है कि भारत अब क्या करेगा? पूरा घटनाक्रम बेहद संवेदनशील और राजनीतिक रूप से जटिल है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
हालांकि बांग्लादेश ने बार-बार भारत से शेख हसीना को सौंपने की मांग की है, लेकिन भारत के हसीना को प्रत्यर्पित करने की संभावना काफी कम मानी जा रही है।
2013 की भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के तहत भले ही हत्या और अन्य गंभीर अपराध प्रत्यर्पण योग्य हों, लेकिन राजनीतिक प्रकृति के मामलों को इससे छूट मिल सकती है। संधि के अनुच्छेद 8 में स्पष्ट है कि अगर आरोप “सही मंशा या न्याय के हित में” न हों, तो प्रत्यर्पण से इंकार किया जा सकता है।
मोदी सरकार शेख हसीना को एक करीबी रणनीतिक सहयोगी मानती रही है। भारत उन्हें निर्वासन में एक राजनीतिक शरणार्थी के रूप में देख रहा है, न कि अपराधी के रूप में। ऐसे में भारत द्वारा उन्हें वापस भेजना आसान या संभावित नहीं है।
भारत का आधिकारिक बयान:
भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा:
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ICT के फैसले का संज्ञान लिया गया है।
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भारत बांग्लादेश के “शांति, लोकतंत्र और स्थिरता” के साथ खड़ा है।
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भारत सभी पक्षों के साथ बातचीत जारी रखेगा।
यह बयान कूटनीतिक संतुलन बनाए हुए है — न तो हसीना का खुला समर्थन, न ही बांग्लादेश की मांग के प्रति सहमति।
शेख हसीना ने क्या कहा?
सजा सुनाए जाने के बाद शेख हसीना ने ICT को “धांधली और पक्षपात से भरा न्यायाधिकरण” कहा। उन्होंने आरोप लगाया कि–
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अंतरिम सरकार के कठोर तत्व उन्हें और उनकी पार्टी अवामी लीग को खत्म करना चाहते हैं।
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ICT एक निष्पक्ष अदालत नहीं है, क्योंकि मौजूदा सरकार को जनता का जनादेश नहीं है।
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प्रशासन इस्लामिक कट्टरवादियों के नियंत्रण में है।
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अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं।
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पत्रकारों की गिरफ्तारी और महिलाओं के उत्पीड़न में बढ़ोतरी हुई है।
हसीना का दावा है कि देश में लोकतांत्रिक ढांचा टूट चुका है और मौजूदा सरकार उन्हें राजनीतिक रूप से खत्म करने की कोशिश में है।
बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरवाद की गतिविधि
हसीना ने चेतावनी दी कि यूनुस सरकार के दौरान इस्लामी कट्टरवादी खुले तौर पर सक्रिय हो गए हैं।
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अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े
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आर्थिक गतिविधियाँ ठप
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मीडिया दमन
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चुनाव लंबे समय से टल रहे हैं
उनके अनुसार यह बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष पहचान के लिए खतरा है।
अब तक क्या-क्या हुआ? पूरा टाइमलाइन
5 अगस्त 2024:
छात्र आंदोलन ने तेज रूप लिया और शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ा। वे भारत चली गईं।
8 अगस्त 2024:
मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन।
14 अगस्त 2024:
अंतरिम सरकार ने कहा — छात्र आंदोलन में हुई मौतों पर ICT में मुकदमे चलेंगे।
अक्टूबर 2024:
ICT-बांग्लादेश का पुनर्गठन किया गया।
17 अक्टूबर 2024:
हसीना और उनके 45 सहयोगियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी।
नवंबर 2024:
ICT ने दिसंबर तक जांच पूरी करने का आदेश दिया।
फरवरी 2025:
UN रिपोर्ट — लगभग 1,400 लोग विद्रोह और दंगों में मारे गए।
1 जून 2025:
मुकदमे की औपचारिक शुरुआत।
19 जून 2025:
पूर्व जज को शेख हसीना का “न्याय मित्र” नियुक्त किया गया।
2 जुलाई 2025:
अदालत की अवमानना के लिए 6 महीने की सजा (अनुपस्थिति में)।
10 जुलाई 2025:
मानवता के विरुद्ध 5 बड़े आरोप तय किए गए।
3 अगस्त 2025:
हसीना की अनुपस्थिति में मुकदमा शुरू हुआ।
23 अक्टूबर 2025:
सुनवाई पूरी।
17 नवंबर 2025:
ICT ने हसीना को दोषी करार दिया और मौत की सजा सुनाई।
पूर्व गृह मंत्री कमाल को भी फांसी।
पूर्व पुलिस प्रमुख मामून, गवाह बन चुके, को 5 साल की सजा।





