नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच के सामने मंगलवार को एक ऐसा मामला आया जिसने न्यायपालिका की संवेदनशीलता और मानवता को एक बार फिर से उजागर किया। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के एक छोटे से गांव के छात्र अतुल कुमार, जो आईआईटी धनबाद में दाखिला पाने की योग्यता रखते थे, महज तीन मिनट की देरी के कारण यह अवसर खो बैठे। यह देरी उनकी अपनी गलती नहीं, बल्कि सर्वर के डाउन होने की वजह से हुई, जिसने उन्हें फीस जमा करने से रोक दिया।
संघर्ष और उम्मीद की कहानी
अतुल कुमार का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है। उनके पिता मेरठ में मजदूरी करते हैं और पार्ट-टाइम टेलर हैं। 18 साल के अतुल ने अपने बड़े भाई के लैपटॉप पर जेईई का परिणाम देखा था, जिससे पता चला कि वह आईआईटी धनबाद में चयनित हो गए हैं। हालांकि, उनके पास एडमिशन की फीस भरने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। गांव के लोगों ने मदद की, और आखिरकार उन्होंने 17,500 रुपये जुटा लिए।
लेकिन दुर्भाग्यवश, 24 जून को फीस जमा करने की अंतिम समय सीमा से मात्र तीन मिनट पहले, ऑनलाइन पोर्टल का सर्वर डाउन हो गया और अतुल फीस जमा नहीं कर पाए। इस वजह से उन्होंने आईआईटी में दाखिले का मौका गंवा दिया।
गांव के लोगों का सहयोग
अतुल के गांव टिटोरा में उनकी सफलता और फिर इस दुर्भाग्य की चर्चा हर गली-चौराहे और चाय की दुकानों पर हो रही है। गांव के लोगों ने जब सुना कि अतुल को आर्थिक मदद की जरूरत है, तो वे एकजुट हो गए और फीस भरने में मदद की। परंतु किस्मत के इस मोड़ पर अतुल को निराशा हाथ लगी।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
अतुल की यह कहानी जब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची, तो चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले को गंभीरता से लिया। उन्होंने छात्र की कठिनाइयों और उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि पर ध्यान देते हुए इसे न्यायिक संज्ञान में लिया। बेंच ने मामले को 30 सितंबर के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा, “यह मामला याचिकाकर्ता की सामाजिक पृष्ठभूमि और उसकी कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए एक उचित नोटिस का है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि याचिकाकर्ता के प्रवेश की सुरक्षा के लिए कुछ किया जा सकता है या नहीं।”
शिक्षा की ओर एक नई उम्मीद
अतुल के पिता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “मैं चाहे आधी रोटी खाऊं, लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ाऊंगा।” इस घटना से न केवल अतुल का सपना टूटा, बल्कि उनके गांव और परिवार के लोगों को भी निराशा हुई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने एक नई उम्मीद जगाई है कि शायद अतुल के लिए एक बार फिर से आईआईटी में दाखिले का दरवाजा खुल सके।
अतुल कुमार की यह कहानी न केवल एक गरीब छात्र के संघर्ष और दृढ़ संकल्प की मिसाल है, बल्कि यह दिखाती है कि सही समय पर कानूनी हस्तक्षेप से जीवन में बदलाव लाया जा सकता है। अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हैं, जो इस होनहार छात्र के भविष्य को फिर से संवार सकता है।
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Author: Sweta Sharma
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