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युवाओं में सांस्कृतिक चेतना जागृति करने के लिए पहली बार ग्रीष्मकालीन कार्यशालाओं का आयोजन

संस्कृति विभाग की यह पहल ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ एवं ‘वोकल फॉर, लोकल’ जैसे अभियानों का विस्तार-जयवीर सिंह

संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रदेश की सांस्कृतिक चेतना के नवोन्मेषी जागरण हेतु पहली बार समस्त 75 जनपदों में एक साथ ग्रीष्मकालीन कार्यशालाओं का भव्य आयोजन किया जा रहा है। यह आयोजन केवल प्रशिक्षण की श्रृंखला नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की लोक-संस्कृति की आत्मा को पुनः जीवन्त करने का एक सांस्कृतिक संकल्प है। इन कार्यशालाओं का आयोजन विद्यालयों और महाविद्यालयों में ग्रीष्मकालीन अवकाश के मद्देनजर ये कार्यशालएं 20 जून से 20 जुलाई 2025 के बीच आयोजित की जा रही हैं, जिससे छात्र-छात्राएं सक्रिय रूप से इसमें भागीदारी कर सकें।

यह जानकारी प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री जयवीर सिंह ने दी। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में जब आधुनिकता की तेज रफ्तार में हमारी पारंपरिक लोक कलाएं लोकगायन, लोकवाद्य, जनजातीय नृत्य, कठपुतली, पारंपरिक चित्रशिल्प एवं क्षेत्रीय लोकनाट्य परंपराएं धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं, ऐसे में यह प्रयास नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का एक अमूल्य अवसर प्रदान करता है। ‘‘संस्कृति केवल स्मृति नहीं, वह जीवंत धारा है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाहित होती है। ‘‘इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान, लखनऊ (संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार) द्वारा ‘सृजन’ ग्रीष्मकालीन कार्यशालाओं के अंतर्गत एक अभिनव एवं दूरगामी सांस्कृतिक पहल को मूर्त रूप दिया जा रहा है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य प्रदेश की विलुप्तप्राय लोककलाओं और जनजातीय सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित कर उसे नई पीढ़ी तक प्रभावशाली ढंग से पहुँचाना है।

श्री सिंह ने बताया कि इन कार्यशालाओं का उद्देश्य केवल कौशल प्रशिक्षण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक सांस्कृतिक संवाद की प्रक्रिया भी बन गई है। युवा पीढ़ी को न केवल इन कलाओं से परिचय मिला, बल्कि उन्होंने इसे अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम भी बनाया। इन कार्यशालाओं ने कला और लोकसंस्कृति के माध्यम से विद्यार्थियों में आत्मविश्वास, अनुशासन एवं टीमवर्क जैसे मूल्यों का भी विकास किया। उन्होंने बताया कि ‘सृजन’ कार्यशालाएं प्रदेश की स्थानीय प्रतिभाओं भी एक मंच प्रदान कर रही हैं। गाँवों, कस्बों और छोटे शहरों में छिपे कला कौशल को पहचानने और उन्हें प्रशिक्षक के रूप में जोड़ने की यह योजना एक सशक्त सामाजिक-सांस्कृतिक हस्तक्षेप है। कई स्थानों पर पूर्व प्रशिक्षुं अब प्रशिक्षक की भूमिका में आकर इस श्रृंखला को आगे बढ़ा रहे हैं।

पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री ने बताया कि हमारी लोककलाएं केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं हैं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान, जीवन दृष्टि और सामाजिक चेतना की आधारशिला है। ‘सृजन’ कार्यशालाएं इस दिशा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रयास है, जो बच्चों एवं युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य कर रही है। उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग की यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ एवं ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसे अभियानों के अनुरूप है। ‘सृजन’ कार्यशालाएं ग्रामीण भारत की आत्मा कहे जाने वाले लोककलाओं को पुनः जीवंत करने के एक सशक्त माध्यम के रूप में उभर रही है।

Sweta Sharma
Author: Sweta Sharma

I am Sweta Sharma, a dedicated reporter and content writer, specializes in uncovering truths and crafting compelling news, interviews, and features.

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