नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में इलाहबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर यादव ने देश बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा वाला विवादास्पद बयान दिए थे, जिन पर बहस और आलोचना का बाजार गर्म हो गया। उन्होंने अपने बयान में कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया था, जो न्यायपालिका की निष्पक्षता और मर्यादा के खिलाफ माने गए। यह बयान विशेष रूप से समाज के विभिन्न वर्गों को प्रभावित कर रहे थे और उन पर सवाल उठाए जा रहे थे कि क्या यह एक उच्च न्यायालय के जज के पद की गरिमा के अनुरूप है। हंगामा होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर बड़ा एक्शन लिया है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस शेखर कुमार यादव को पेश होने के लिए समन भेजा है। जस्टिस शेखर कुमार यादव को अपने विवादास्पद बयान पर स्पष्टीकरण देने को भी कहा गया है।
न्यायमूर्ति शेखर यादव के बयान पर विवाद तब बढ़ा जब उनके द्वारा किए गए टिप्पणी को उनके पद और स्थिति के हिसाब से अनुपयुक्त माना गया। खासकर उनकी टिप्पणी का प्रभाव सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संदर्भ में देखा गया, और यह तर्क दिया गया कि एक न्यायधीश को व्यक्तिगत विचारों को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने से बचना चाहिए, क्योंकि यह न्याय की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है।
इसके बाद, उच्च न्यायिक मंच और अदालत के अन्य वरिष्ठ न्यायधीशों ने इस मामले को गंभीरता से लिया। सुप्रीम कोर्ट और राज्य उच्च न्यायालयों की जांच समितियों ने इस विवादित बयान की समीक्षा शुरू की। उन्होंने जस्टिस यादव के बयान के असर को गंभीरता से मापने का प्रयास किया। इसके अलावा, यह भी जांचा गया कि क्या इस बयान से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और साख को कोई खतरा हो सकता है या नहीं।
जांच के दौरान जस्टिस शेखर यादव ने अपने बयान को स्पष्ट करते हुए कहा कि उनका उद्देश्य किसी को अपमानित करना या विवाद पैदा करना नहीं था। हालांकि, इस स्थिति में उनका बयान विवादित हो गया, और उन पर एक सार्वजनिक अनुशासनहीनता का आरोप लगाया गया।
इस प्रकरण ने न्यायपालिका में नैतिकता और आचार संहिता के महत्व को फिर से उजागर किया है। यह मामला यह भी दर्शाता है कि उच्च न्यायालय के न्यायधीशों पर केवल उनके निर्णयों की ही नहीं, बल्कि उनके व्यक्तिगत वक्तव्यों की भी गहरी निगरानी रहती है। अंततः, यह मामला न्यायपालिका के भीतर आत्मनिरीक्षण और पारदर्शिता की आवश्यकता को एक बार फिर से साबित करता है, ताकि जनता का न्यायपालिका में विश्वास बना रहे।
गौरतलब है कि जस्टिस शेखर कुमार यादव ने विश्व हिंदू परिषद की लीगल सेल की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में विवादास्पद बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि देश का कानून बहुसंख्यकों की इच्छा के मुताबिक चलेगा। सूत्रों के हवाले से बताया कि देश के मुख्य न्यायधीश जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाला कॉलेजियम इस मामले पर जल्द ही सुनवाई करेगी।
खबरों के मुताबिक शीर्ष अदालत के शीतकालीन अवकाश यानी 17 दिसंबर से पहले सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विचार विमर्श करेगी। इससे पहले 10 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बयान से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट से रिपोर्ट मांगी थी।
