शुक्रवार को मिलेगा विशेष पुण्य
निश्चय टाइम्स, डेस्क। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होता है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि, शत्रुओं पर विजय तथा सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। प्रदोष व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था और श्रद्धा का संगम है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

भादो मास का यह अंतिम शुक्र प्रदोष व्रत, श्रद्धालुओं के लिए सौभाग्य, समृद्धि और दिव्य आशीर्वाद पाने का उत्तम अवसर है। वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 5 सितंबर 2025, शुक्रवार को मनाई जाएगी। तिथि का आरंभ सुबह 4:08 बजे होगा और समापन 6 सितंबर को प्रातः 3:12 बजे होगा। इस बार का व्रत शुक्रवार को पड़ने से शुक्र प्रदोष व्रत कहलाएगा। इस व्रत में पूजा का सबसे उत्तम समय शाम 6:38 बजे से रात 8:55 बजे तक रहेगा। इस समय भगवान शिव, माता पार्वती और समस्त शिव परिवार की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
धार्मिक महत्व
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शुक्र प्रदोष व्रत करने से दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है।
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विवाहित महिलाएं इसे पति की लंबी आयु और सौभाग्य के लिए रखती हैं।
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शत्रुओं पर विजय और जीवन के संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है।
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पालन करने योग्य नियम
- व्रत वाले दिन प्रातः स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें और व्रत का संकल्प लें।
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भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक कर बेल पत्र, पुष्प, धूप, दीप अर्पित करें।
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शिव परिवार की पूजा करें और प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें।
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अंत में आरती और शिव चालीसा का पाठ कर व्रत का समापन करें।





