नई दिल्ली। तुर्की ने 2024 में अपने 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान कान की पहली उड़ान भरी, जबकि भारत का एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) प्रोजेक्ट अभी भी विकास के शुरुआती चरणों में है। यह दोनों देशों के बीच एक दिलचस्प तुलना का विषय बन चुका है, क्योंकि दोनों ने 2010 में ही अपने-अपने पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने के लिए परियोजनाएं शुरू की थीं। जबकि तुर्की ने कान विमान के पहले प्रोटोटाइप को उड़ा लिया है, भारत का एएमसीए अभी तक प्रोटोटाइप मॉडल तक ही सीमित है, और इसकी पहली उड़ान 2028 के बाद ही संभव हो सकती है।
तुर्की ने 2010 में अपने पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान प्रोजेक्ट की घोषणा की थी, और इसके तहत कान विमान के डिजाइन और निर्माण का जिम्मा तुर्की एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज को सौंपा गया। वहीं, भारत का एएमसीए प्रोजेक्ट कई कारणों से धीमा पड़ा हुआ है। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने 2010 में इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी, लेकिन नौकरशाही की देरी और फंड की कमी ने इसके विकास को प्रभावित किया है। एएमसीए में स्टील्थ टेक्नोलॉजी, सुपरक्रूज़, एईएसए रडार और इंटरनल हथियार बे जैसे फीचर्स होंगे, लेकिन भारत का लक्ष्य एक स्वदेशी इंजन विकसित करने का भी है।
हालांकि, भारत की हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के पास आवश्यक संसाधन और तकनीकी क्षमता है, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक अड़चनों ने प्रोजेक्ट की गति को धीमा किया है।तुर्की ने पहले ही कई ठोस कदम उठाए हैं, जैसे कि डिजाइन फैसले, इंजन की विकास प्रक्रिया और सैन्य सहायता से जुड़े रणनीतिक निर्णय। इसके विपरीत, भारत में ऐसे निर्णयों को राजनीतिक और नौकरशाही स्तर पर अवरोधों का सामना करना पड़ता है। तुर्की का कान विमान एफ-16 जैसे पुराने अमेरिकी विमान के बेड़े को बदलने और इसे निर्यात करने का लक्ष्य रखता है, जबकि भारत का एएमसीए प्रोजेक्ट भी विदेशी मदद के बिना स्वदेशी समाधान की दिशा में काम कर रहा है। यह स्पष्ट है कि तुर्की की रक्षा उद्योग ने अपनी योजनाओं को तेजी से कार्यान्वित किया है।
