मुंबई। महाराष्ट्र चुनाव में बंटेंगे तो कटेंगे का नारा खूब उछला था। किसी ने इस नारे पर भरोसा किया हो या न किया हो। पर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे पर इसका प्रभाव जरुर दिखाई देता नजर आ रहा है। यदि सबकुछ ठीक रहा तो आने वाले बीएमसीचुनाव में दोनों भाई साथ आ सकते हैं। हाल ही में एक पारिवारिक कार्यक्रम में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे की एंट्री ने परिवार में सुलह के संकेत दिए हैं। इस कार्यक्रम में शिवसेना यूबीटी चीफ उद्धव ठाकरे भी पहुंचे थे। हालांकि, इसे लेकर दोनों ही नेताओं ने आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है।
महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का संबंध हमेशा ही जटिल और संघर्षपूर्ण रहा है। दोनों शिवसेना के परिवार से हैं, लेकिन राजनीति में उनके रास्ते अलग-अलग हो गए। उद्धव ठाकरे, शिवसेना के अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जबकि राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) की स्थापना की थी।
दरअसल, रविवार को उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे के भांजे शौनक पातंकर की शादी में राज पहुंचे थे। इसके साथ ही अटकलें शुरू हो गईं कि दोनों भाई सियासी मैदान में हाथ मिला सकते हैं। बांद्रा पश्चिम के ताज लैंड्स एन्ड में हुए कार्यक्रम में कई बड़े राजनेता पहुंचे थे। चर्चाएं हैं कि राज और उद्धव मतभेद भुलाकर आगामी निकाय चुनाव के लिए साथ आ सकते हैं।
हाल ही में, दोनों नेताओं के बीच बढ़ती राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियों के कारण सुलह की संभावना की चर्चा हो रही है। महाराष्ट्र में राजनीतिक स्थिति अस्थिर रही है, और दोनों ही नेता राज्य की सत्ता में अपने प्रभाव को मजबूत करने के लिए प्रयासरत हैं। उद्धव ठाकरे, जो शरद पवार और कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास आघाड़ी (MVA) सरकार चला रहे थे, अब बीजेपी से विपक्षी संघर्ष की रणनीति पर विचार कर रहे हैं। वहीं, राज ठाकरे ने हमेशा उद्धव ठाकरे पर निशाना साधा है और उनकी राजनीति को चुनौती दी है।
हाल के समय में दोनों नेताओं के बयानों में नरमी और सुलह के संकेत मिले हैं। उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे को एक “समझदार” नेता करार दिया और कहा कि वे एक-दूसरे के साथ अच्छे संबंध बना सकते हैं। वहीं, राज ठाकरे भी संकेत दे रहे हैं कि शिवसेना परिवार की एकता की आवश्यकता है, और अगर दोनों के बीच सुलह होती है तो इसका महाराष्ट्र की राजनीति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, दोनों ही दलों के कार्यकर्ता सुलह की बात पर जोर दे रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि दोनों नेताओं का साथ आना मराठी मतों को एकजुट कर सकता है। सूत्रों ने बताया कि राज के शादी समारोह में पहुंचने को उद्धव की तरफ से शांति प्रस्ताव को स्वीकार करने के तौर पर देखा जा रहा है।
सूत्रों ने बताया कि राज समारोह के दौरान रश्मि और उनकी मां से मिले थे। हालांकि, उनकी मीटिंग आदित्य ठाकरे से नहीं हो सकी। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि शिवसेना यूबीटी और मनसे के बीच जारी सियासी तनातनी मराठी वोट बंटने का कारण बन रही है। राज और उद्धव आंतरिक कलह के चलते साल 2006 में अलग हो गए। राज ने मनसे का गठन किया। वहीं, उद्धव को अविभाजित शिवसेना की कमान मिली थी।
इस संभावित सुलह के पीछे एक बड़ी वजह राज्य में बढ़ते बीजेपी के प्रभाव को कम करना और मराठी पहचान को लेकर बढ़ती राजनीति है। दोनों नेता जानते हैं कि अगर वे एकजुट होते हैं, तो उनका गठबंधन महाराष्ट्र में बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बना सकता है। साथ ही, राज्य की राजनीति में मराठा समुदाय के महत्व को देखते हुए दोनों नेताओं के लिए यह कदम फायदेमंद हो सकता है।
इस स्थिति में, अगर उद्धव और राज के बीच कोई समझौता होता है तो यह भारतीय राजनीति के एक नए मोड़ की शुरुआत हो सकती है, जहां परिवार के भीतर की प्रतिद्वंद्विता को खत्म करके एकजुट होकर नया मोर्चा तैयार किया जा सकता है।
