उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव ने पश्चिमी यूपी में नए सियासी समीकरण बनाने के संकेत दिए हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा सुम्बुल राणा को उम्मीदवार बनाने के फैसले ने न केवल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए चुनौती खड़ी की है, बल्कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के लिए भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
सुम्बुल राणा: मुस्लिम वोट बैंक की नई चाबी
सुम्बुल राणा का नाम चुनावी मैदान में आने के बाद मुस्लिम वोट बैंक एकजुट होकर सपा की ओर जाने के संकेत दे रहा है। सुम्बुल, बसपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सदस्य मुनकाद अली की बेटी हैं और सपा नेता कादिर राणा की बहू भी हैं। उनके सपा से जुड़ने के बाद, बसपा के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ बनाए रखना मुश्किल होता दिख रहा है।
2013 दंगों के बाद के समीकरण
मुजफ्फरनगर ने 2013 के दंगों के बाद पश्चिमी यूपी में सियासी संतुलन बदल दिया था। उस समय सपा और भाजपा आमने-सामने थे, जबकि बसपा धीरे-धीरे हाशिए पर चली गई थी। अब सुम्बुल की उम्मीदवारी ने बसपा के लिए बड़ी चुनौती पैदा कर दी है, क्योंकि मुस्लिम वोट बैंक सपा के साथ जुड़ सकता है।
बसपा के लिए मुश्किलें बढ़ीं
बसपा ने मीरापुर से शाह नजर को टिकट दिया है, जो चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के करीबी माने जाते हैं। हालांकि, मुनकाद अली के प्रभाव के बावजूद, बसपा का पिछले कुछ चुनावों में प्रदर्शन खराब रहा है। 2014 और 2017 के चुनावों में हार के बाद, बसपा ने 2019 में सपा के साथ गठबंधन में कुछ सीटें जीती थीं, लेकिन वह गठबंधन भी लंबे समय तक नहीं चला। 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा का पश्चिमी उत्तर प्रदेश से पूरी तरह सफाया हो गया था।
भाजपा को दुरुस्त करनी होगी रणनीति
सपा द्वारा सुम्बुल राणा को टिकट देने से भाजपा के लिए चुनौती बढ़ गई है। अब भाजपा को मीरापुर में अपने प्रत्याशी चयन और रणनीति को मजबूत करना होगा। इस बीच, कांग्रेस में भी हलचल मची हुई है, क्योंकि चर्चा थी कि कांग्रेस नेता इमरान मसूद मीरापुर से अपने प्रत्याशी को मैदान में उतारने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन सुम्बुल की उम्मीदवारी ने कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
सपा का मीरापुर में वापसी का प्रयास
सपा मीरापुर में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने की कोशिश कर रही है। इस सीट पर सपा ने आखिरी बार 1996 में जीत दर्ज की थी, जब यह मोरना सीट के नाम से जानी जाती थी। 2012 में परिसीमन के बाद मीरापुर सीट बनी और उसके बाद बसपा, भाजपा और रालोद ने बारी-बारी से यहां जीत हासिल की।
अखिलेश यादव का बड़ा दांव
अखिलेश यादव के इस सियासी दांव ने न केवल सपा को मुस्लिम वोट बैंक का समर्थन हासिल करने की राह दिखाई है, बल्कि भाजपा और बसपा दोनों को भी मजबूर कर दिया है कि वे अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करें। मीरापुर का यह उपचुनाव न केवल स्थानीय राजनीति बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भविष्य के राजनीतिक समीकरणों के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
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Author: Sweta Sharma
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