नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि भारत में ऐसे लोकतंत्र की कभी कल्पना नहीं की गई थी, जहां न्यायपालिका न सिर्फ कानून बनाए बल्कि कार्यपालिका की भूमिका भी निभाए और ‘सुपर संसद’ बन जाए। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने Supreme Court के उस आदेश पर सवाल उठाया है, जिसमें राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर तीन महीने के भीतर फैसला लेने की समयसीमा तय की गई है। उन्होंने कहा, “ये पहली बार हुआ है कि राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद को समयबद्ध निर्देश दिया गया है। क्या हमने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना की थी?”
उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट कहा कि न्यायपालिका का अधिकार सिर्फ संविधान की व्याख्या तक सीमित है, वो भी अनुच्छेद 145(3) के तहत, जहां कम से कम पांच जजों की संविधान पीठ ही फैसला ले सकती है। उन्होंने आगे कहा, “राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है, जो संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं। जबकि सांसद, मंत्री, उपराष्ट्रपति और जज सिर्फ संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं। हमें इस संतुलन का सम्मान करना चाहिए।”
धनखड़ ने यह भी जोड़ा कि, “मेरे जीवन में कभी नहीं सोचा था कि ऐसा दिन आएगा जब राष्ट्रपति को निर्देशित किया जाएगा। यह संविधान की भावना और संस्थागत गरिमा के विरुद्ध है।” यह बयान उन दिनों सामने आया है जब न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच अधिकारों की सीमा को लेकर बहस तेज होती जा रही है। उपराष्ट्रपति का यह बयान निश्चित तौर पर एक नई बहस को जन्म देगा।
Author: Sweta Sharma
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