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शताब्दियों के संघर्ष के बाद ‘स्वर्ण शिखर’ का दर्शन

राम राज्य की प्रतिष्ठा का स्वर्णिम मुहूर्त

 बृजनन्दन राजू
निश्चय टाइम्स , लखनऊ।  राम मंदिर का निर्माण अब पूर्णता की ओर है। मंदिर के शिखर स्वर्णिम आभा से आलोकित हो रहे हैं। अयोध्या का श्रीराम जन्मभूमि मंदिर हिन्दुओं की श्रद्धा का केन्द्र है। श्रीराम की गौरव व गरिमा के अनुरूप बन रहा भव्य दिव्य राम मंदिर हिन्दुओं के स्वाभिमान का प्रतीक है। कई शताब्दियों के संघर्ष के बाद हिन्दुओं को श्री राम जन्मभूमि मंदिर के दिव्य स्वर्णमंडित शिखर के दर्शन हो रहे हैं। प्रभु श्रीराम का यह मंदिर केवल एक स्थापत्य नहीं, बल्कि नए भारत के संकल्पों के शिखर के साथ साथ भारत की लोक आस्था का ‘स्वर्ण शिखर’ है। राम मंदिर के लिए संघर्ष करते—करते हिन्दुओं की कई पीढ़ियां खप गयीं। लाखों रामभक्तों ने बलिदान दिया। हम भाग्यवान हैं कि श्री राम जन्मभूमि मंदिर में विराजमान रामलला तथा नवनिर्मित प्रथम तल पर श्रीराम दरबार एवं मंदिर के स्वर्णमंडित शिखर के दर्शन कर पा रहे हैं। गोरक्ष पीठाधीश्वर एवं उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पावन उपस्थिति में अभिजित मुहूर्त में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच श्रीराम दरबार सहित अष्ट देवालयों में एक संग अनुष्ठानपूर्वक पवित्र देव विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम संपन्न हुआ। परकोटा के ईशान कोण पर शिवलिंग, अग्निकोण में प्रथम पूज्य श्री गणेश, दक्षिणी भुजा के मध्य में महाबली हनुमान, नैऋत्य कोण में प्रत्यक्ष देवता सूर्य, वायव्य कोण में मां भगवती, उत्तरी भुजा के मध्य में अन्नपूर्णा माता के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा हुई। परकोटा के दक्षिणी पश्चिमी कोने में शेषावतार प्रतिमा की भी प्राण प्रतिष्ठा हुई। तीन दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पहले दिन पूर्व पूज्य संतों में जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती,युग पुरूष स्वामी परमानन्द, श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र के न्यासीगण, प्रबुद्ध नागरिकों तथा अपार जनसमूह की उपस्थिति में पुण्य सलिला सरयू के तट से राम जन्मभूमि तक मंगल कलश यात्रा निकाली गयी। अनुष्ठान के दूसरे दिन उत्सव विग्रहों ने परिसर भ्रमण किया, तत्पश्चात शय्या निवास तथा प्रासाद वास्तु पूजन हुआ। बाद में यज्ञशाला में हवन तथा आरती हुई।

अन्नाधिवास, घृताधिवास, जलाधिवास,पुष्पा निवास, शर्कराधिवास, शय्या धिवास – सभी क्रम से सम्पन्न कराए गए। यज्ञमंडप के अलावा प्राण प्रतिष्ठा वाले स्थानों पर भी पूजन हुआ। 05 जून को श्रीराम दरबार सहित अष्ट देवालयों में पवित्र देव विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा, यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यना के नेतृत्व में भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। कहि न जाइ कछु नगर बिभूति। आज अयोध्या नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता। सारे अयोध्यावासी सुखी हैं। वैसे योगी आदित्यनाथ के बारे में जो कुछ कहा जाय वह थोड़ा ही है। जब से योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनें हैं तब से अयोध्या में नित्य नये मंगल ही हो रहे हैं। चहुंओर आनंद ही आनंद है। बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जितनी बार गए, अयोध्या को कुछ न कुछ सौगात देकर आए। उनकी मंशा अयोध्या को दुनिया का सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थल बनाने की है। इसके अनुरूप ही अयोध्या के कायाकल्प का काम जारी है। योगी सरकार की मंशा है कि अयोध्या उतनी ही भव्य दिखे जितनी त्रेता युग में थी। इसकी कल्पना गोस्वामी तुलसीदास ने कुछ इस तरह की है, ‘अवधपुरी अति रुचिर बनाई। देवन्ह सुमन बृष्टि झरि लाई।’राम जन्मभूमि मंदिर में श्रीराम दरबार की स्थापना अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति ने उनके जन्मदिन व पर्यावरण दिवस को और खास बना दिया। जन्मदिन के अवसर पर अयोध्या जाने से पूर्व मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री आवास पर बेल का पौधा लगाया। ‘अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ, यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ, जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।’इस चौपाई को योगी आदित्यनाथ बार—बार दोहराते हैं।
योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री के साथ गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं। गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों ने करीब एक सदी तक राम मंदिर के लिए संघर्ष किया। योगी आदित्यनाथ दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और अपने गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के सपनों को साकार कर रहे हैं।
जब से योगी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तब से अयोध्या की बेहतरी के लिए जो भी संभव है वह किया। राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद तो उन्होंने अयोध्या के कायाकल्प के लिए खजाने का मुंह ही खोल दिया। आज बदली अयोध्या इसका प्रमाण है। बदलाव का यह सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक उनकी मंशा के अनुसार अपने बदले रूप में अयोध्या का शुमार धार्मिक लिहाज से दुनिया के सबसे खूबसूरत तीर्थस्थान के रूप में नहीं हो जाता। मुख्यमंत्री ने कहा कि अयोध्या आज एक नए युग की शुरुआत का साक्षी बन रही है। भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा ने 500 वर्षों के लंबे इंतजार को समाप्त कर भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण को गति दी है। उन्होंने कहा कि अयोध्या के इस वैभव ने न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे भारत का सम्मान विश्व पटल पर बढ़ाया है। आज जो भी अयोध्या आता है, वह अभिभूत होकर जाता है। अयोध्या की यह प्रगति उत्तर प्रदेश और भारत की नई पहचान का प्रतीक है।
कनक सिंघासन सीय समेता। बैठहिं रामु होइ चित चेता।
राम दरबार की स्थापना समारोह में मुख्य यजमान के नाते योगी की उपस्थिति के समय मुहूर्त इसे और खास बनाया। मसलन यह कृष्ण के द्वापर युग की आरंभ तिथि है।
पांच जून को ज्येष्ठ शुक्ल दशमी की तिथि थी। यह मोक्षदायिनी, जीवनदायिनी, दुनिया के सबसे पुरानी सभ्यताओं का पालना रही भारतीय परंपरा में सबसे पवित्र एवं पूज्यनीय गंगा नदी के धरा पर अवतरण की भी तिथि है। उनका अवतरण सतयुग में हुआ था। इस तिथि पर गंगा दशहरा का आयोजन होता है। त्रेता में भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पूरे रामेश्वरम की स्थापना भी इसी तिथि पर की थी। इस तरह इस तिथि का विस्तार सभी युगों तक है।
उल्लेखनीय है कि अपनी परंपरा में शुभ मुहूर्त का शुरू से ही बेहद महत्व रहा है। यहां तक कि जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया था तब भी शुभ मुहूर्त ही था, इस बारे में रामचरित मानस में तुलसी दास ने लिखा है, “नौमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता। मध्य दिवस अति सीत न घामा, पावन काल लोक बिश्रामा।”
मालूम हो कि राम मंदिर निर्माण के हर महत्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए शुभ मुहूर्त का चयन किया गया। मसलन पिछले 30 अप्रैल को जब निर्माण के बाद प्रतिमाओं को जयपुर से लाकर संबंधित मंदिरों में रखा गया, तब अक्षय तृतीया का दिन था। माना जाता है कि इस दिन कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। इसी क्रम में पिछले साल 22 जनवरी को मंदिर के भूतल में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पौष शुक्ल द्वादशी को हुई थी। इसे भगवान विष्णु के कूर्मावतार की तिथि मानी जाती है। राम राज बैठे त्रैलोका। हर्षित भए गए सब सोका॥ बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप बिषमता खोई॥ राम दरबार की मूर्तियों में हर भाव जीवंत है। मकराना के सफेद संगमरमर से जयपुर में निर्मित रामदरबार में भगवान राम,मां सीता,लक्ष्मण,भरत व शत्रुध्न के साथ हनुमान जी की मूर्तियां हैं। भगवान राम और सीता मां सिंहासन पर विराजमान हैं तो भरत व हनुमान उनके चरणों में बैठे हैं। श्रीराम की मूर्ति में मर्यादा व करूणा,सीता में शांति,लक्ष्मण में समर्पण और हनुमान में भक्ति और बल का संयोजन दर्शनीय है। मूर्ति की ऊंचाई साढ़े सात फिट है। सिंहासन तीन फिट ऊंचा है जबकि सीताराम का विग्रह साढ़े चार फिट ऊंचा है। अपने जन्मदिन पर इस ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे भारत की आत्मा की प्रतिष्ठा बताते हुए कहा ‘राम दरबार केवल धार्मिक नहीं,हमारे शासकीय आदर्श और पारिवारिक जीवन मूल्य का प्रतीक हैै। यह अवसर ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की नूतन अभिव्यक्ति है।

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Author: ntuser1

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