समाजवादी पार्टी ने माता प्रसाद पांडेय को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है.वो इससे पहले दो बार विधानसभा अध्यक्ष और राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं.पीडीए के फार्मूले पर चलते हुए लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने वाली सपा का यह कदम लोगों को चौंका रहा है.सपा ने पहली बार किसी सवर्ण को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है.सपा प्रमुख अखिलेश यादव के इस कदम को प्रदेश में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बड़ा कदम माना जा रहा है.आइए देखते हैं कि सपा के इस कदम के पीछे की राजनीति क्या है. वह इस तरह के कदम उठाकर क्या हासिल करना चाहती है.
कौन कौन थे रेस में
कन्नौज से लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद अखिलेश यादव ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था. वो मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट से विधायक थे.अखिलेश के इस्तीफे से विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली हो गया था.नेता प्रतिपक्ष बनने की रेस में शिवपाल सिंह यादव के अलावा इंद्रजीत सरोज, रामअचल राजभर और तूफानी सरोज के नाम की चर्चा थी. लेकिन रविवार को विधायक दल की बैठक में अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पांडेय के नाम पर मुहर लगाई.
क्या है अखिलेश यादव का पीडीए
सपा के इस कदम ने लोगों को चौंकाया, क्योंकि सपा लोकसभा चुनाव के पहले से ही पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) के फार्मूले पर चल रही थी.इसे सपा के मुस्लिम-यादव वोट बैंक का विस्तार माना गया था.सपा की पीडीए फार्मूले की वजह से लोकसभा चुनाव में परिणाम भी बेहतर आए थे. सपा ने 37 सीटें जीतकर बीजेपी को काफी पीछे धकेल दिया था.सपा की यह जीत कितनी बड़ी थी, उसे इस तरह समझ सकते हैं कि उत्तर प्रदेश में मिली इस हार की वजह से बीजेपी अकेले के दम पर बहुमत नहीं हासिल कर पाई.सपा ने बीजेपी को सबसे बड़ा झटका फैजाबाद में दिया.इसी सीट में अयोध्या आती है.बीजेपी ने अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के दम पूरे देश में वोट मांगा था, लेकिन उसे अयोध्या में ही हार मिली. सपा की इस जीत की चर्चा पूरे देश में हुई.लोकसभा चुनाव में मिली इस जीत के पीछे पीडीए का हाथ बताया गया.
सपा की इस जीत में केवल पीडीए का ही हाथ नहीं था. उसे उन सवर्ण वोटरों का भी साथ मिला था, जो बीजेपी से नाराज चल रहे हैं. इसमें बड़ी संख्या ब्राह्मण मतदाताओं की है.प्रदेश में ब्राह्मण आबादी करीब 10 फीसदी मानी जाती है. प्रदेश की 100 से अधिक सीटों पर ब्राह्मण वोट काफी प्रभावी हैं. इनमें पूर्वांचल का इलाका प्रमुख है.
ब्राह्मणों को लुभाना क्यों चाहती है समाजवादी पार्टी
समाजवादी पार्टी ब्राह्मण वोट बैंक पर पिछले काफी समय से नजर लगाए हुए हैं. ब्राह्मण मतदाताओं को खुश करने के लिए सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार में परशुराम जयंती पर छुट्टी की घोषणा की थी.इसे पहले योगी आदित्यनाथ की सरकार ने रद्द किया और काफी विरोध के बाद बहाल किया.इस ब्राह्मण वोट बैंक को खुश करने के लिए ही सपा ने भगवान परशुराम की सबसे बड़ी प्रतिमा लगाने की भी घोषणा की थी.कानपुर के माफिया विकास दुबे की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत पर भी सपा ने सवाल उठाए थे.उत्तर प्रदेश में 2022 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने लखनऊ के गोसाईंगंज में भगवान परशुराम की प्रतिमा का अनावरण किया था.इस दौरान वो हाथ में फरसा और सुदर्शन चक्र लिए हुए नजर आए थे.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण समुदाय की राजनीतिक ताकत को नजरअंदाज कर पाना मुश्किल है. माना जाता है कि प्रदेश में 2007 में बनी मायावती की बहुमत की सरकार उनकी सोशल इंजीनियरिंग का कमाल था. इसमें ब्राह्मणों का योगदान ज्यादा था.इसके लिए सतीश मिश्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस वजह से वो काफी समय तक मायावती की करीबी बने रहे. वहीं 2012 में बनी समाजवादी पार्टी की सरकार और 2017 में बनी बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में भी ब्राह्मण समुदाय की भूमिका अहम थी.ऐसे में अखिलेश यादव को लगने लगा है कि पीडीए की राजनीति से जितना फायदा उन्हें मिला है, वैसे में अगर ब्राह्मण भी उसके साथ आ जाएं तो 2027 में सपा की सरकार आसानी से बन सकती है.
उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले अगले कुछ महीनों में होने वाले उपचुनावों को लिटमस टेस्ट माना जा रहा है. इसलिए उपचुनावों से पहले ही सपा ने माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष का दायित्व सौंपा है.सपा के इस कदम को पीडीए का फार्मूला आने के बाद सवर्ण मतदाताओं में सपा को लेकर पैदा हुई दुविधा को दूर करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है.खासकर राकेश प्रताप सिंह, मनोज पांडे, अभय सिंह, राकेश पांडे, विनोद चतुर्वेदी जैसे सवर्ण विधायकों की बगावत के बाद.
अपनी स्थापना के बाद पहली बार सपा ने किसी सवर्ण को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया है.सपा के पास सात बार नेता प्रतिपक्ष का पद रहा है. इसमें दो बार पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के पास यह पद रहा. उनके अलावा धनीराम वर्मा, आजम खान, शिवपाल सिंह यादव, रामगोविंद चौधरी और अखिलेश यादव के पास नेता प्रतिपक्ष का पद एक-एक बार रहा है. यानी की सपा ने इस पद पर केवल ओबीसी और अल्पसंख्यक को ही बिठाया था.
अब क्या करेंगी बसपा प्रमुख मायावती
सपा के इस कदम पर बसपा का प्रमुख मायावती ने निशाना साधा है. मायावती ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा,”सपा मुखिया ने लोकसभा आम चुनाव में खासकर संविधान बचाने की आड़ में यहां पीडीए को गुमराह करके उनका वोट तो जरूर ले लिया, लेकिन यूपी विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाने में जो इनकी उपेक्षा की गई, यह भी सोचने की बात हैं.
सपा मुखिया ने लोकसभा आमचुनाव में खासकर संविधान बचाने की आड़ में यहाँ PDA को गुमराह करके उनका वोट तो जरूर ले लिया, लेकिन यूपी विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाने में जो इनकी उपेक्षा की गई, यह भी सोचने की बात। 1/2
कौन हैं माता प्रसाद पांडेय
माता प्रसाद पांडेय सिद्धार्थनगर जिले की इटवा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. पांडेय ने विधआनसभा का चुनाव पहली बार 1980 में जीता था.इसके बाद वो 1985 , 1989, 2002, 2007, 2012 और 2022 में विधानसभा का चुनाव जीते हैं.वो 1991 और 2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. उन्हें 1991 स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया था. वहीं 2003 में वो श्रम और रोजगार विभाग के मंत्री बनाए गए थे. वो 2002 से 2007 तक समाजवादी पार्टी की सरकार में विधानसभा अध्यक्ष के पद पर भी रहे.अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने पर माता प्रसाद पांडेय 15वीं विधानसभा में 2012 से 2017 तक विधानसभा अध्यक्ष के पद पर रहे.

Author: Sweta Sharma
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