नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की दलील पर नाराजगी जताई है जिसमें केंद्र ने कहा था कि पीएमएलए एक्ट के तहत मनी लॉन्ड्रिंग की आरोपी महिलाओं के लिए जमानत का ट्विन कंडिशन लागू होता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह केंद्र की दलीलों को बर्दाश्त नहीं करेगा जो कानून के विपरीत हैं।
कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान इस दलील पर जब आपत्ति जताई थी, जिसमें केंद्र ने कहा था कि पीएमएलए का टि्वन बेल कंडीशन महिलाओं पर भी लागू होता है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रावधान कहता है कि महिलाओं को इससे छूट है। 20 दिसंबर 2024 को कोर्ट ने अडिशनल सॉलिसिटर जनरल को कड़ी फटकार लगाई थी, जब उन्होंने कहा था कि धारा 45 के सख्त जमानत प्रावधान महिलाओं पर भी लागू होते हैं। कोर्ट ने तब साफ कहा था कि धारा 45 का प्रावधान स्पष्ट रूप से महिलाओं को इन शर्तों के हिसाब से छूट देता है।
भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ईडी की ओर से पूर्व में दी गई दलील के लिए माफी मांगी। उन्होंने स्वीकार किया कि यह छूट महिलाओं पर लागू होती है और पहले की दलील कुछ भ्रम और गलत कम्युनिकेशन के कारण दी गई थी। जस्टिस ओका ने इस स्पष्टीकरण को खारिज करते हुए कहा कि गलतफहमी का कोई सवाल ही नहीं है। केंद्र की ओर से ऐसी दलीलें बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं की जाएगी।
सॉलिसिटर जनरल ने माफी मांगते हुए जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा और कहा कि आरोपी महिला आपराधिक गतिविधियों की मुख्य सरगना है और केवल महिला होने के आधार पर जमानत की हकदार नहीं हो सकती है, लेकिन जस्टिस ओका ने जवाब दाखिल करने के अनुरोध को खारिज करते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार के वकील बुनियादी कानून के प्रावधानों को नहीं जानते हैं, तो उन्हें इस मामले में पेश क्यों होना चाहिए?
कोर्ट ने कहा कि अंतिम समय में जवाब दाखिल करना यह दिखाता है कि केंद्र का रवैया पीएमएलए के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को किसी भी स्थिति में जमानत नहीं मिलनी चाहिए। बेंच ने आरोपी शशि बाला को जमानत दे दी। उन्होंने कहा कि आरोपी नवंबर 2023 से जेल में हैं और निकट भविष्य में सुनवाई पूरी होने की संभावना नहीं है, क्योंकि अब तक सबूत दर्ज करना शुरू नहीं हुआ है और 67 गवाहों की जांच बाकी है।
बता दें शशि बाला सरकारी स्कूल की टीचर हैं। उन पर एक कंपनी को अपराध की आय को ठिकाने लगाने में मदद करने का आरोप है। ईडी के मुताबिक शशि बाला ने कंपनी के निदेशक की विश्वासपात्र के रूप में कार्य किया और निवेशकों को धोखाधड़ीपूर्ण योजनाओं के जरिए से ठगकर अवैध लेनदेन में मदद की। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले उनकी जमानत अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि आरोप गंभीर हैं और उन्होंने अपराध की आय को छिपाने और इस्तेमाल करने में मुख्य भूमिका निभाई है। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
								
															
			
			




