प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से शुरू होने वाले महाकुंभ ने संगम नगरी को वैश्विक केंद्र बना दिया है। महाकुंभ में नागा साधु मुख्य आकर्षण का केंद्र होते हैं, जिनकी रहस्यमयी जीवनशैली और कठिन साधना हर किसी को अचंभित करती है।
नागा साधु कपड़े नहीं पहनते और ठंड में भी नग्न अवस्था में रहते हैं। वे शरीर पर भस्म लगाते हैं और इसे भगवान का आशीर्वाद मानते हैं। नागा का मतलब है नग्न, और ये संन्यासी पूरी जिंदगी नग्न अवस्था में रहते हैं।
नागा साधु बनने के लिए अखाड़ों द्वारा विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें 12 वर्षों की कठिन साधना और ब्रह्मचर्य की शिक्षा शामिल है। दीक्षा के बाद संन्यासी यज्ञोपवीत करते हैं और परिवार के साथ-साथ अपना पिंडदान करते हैं। यह पिंडदान उनके पूर्व जीवन को समाप्त मानने का प्रतीक है।
नागा साधु सांसारिक जीवन से पूरी तरह अलग हो जाते हैं। वे जंगलों और पहाड़ों में रहते हैं, जहां इंसानों का आना-जाना कम होता है। नागा साधु अपने समुदाय को ही परिवार मानते हैं और जीवनभर साधना में लीन रहते हैं।
महाकुंभ में नागा साधुओं का आगमन सनातन धर्म के प्रति आस्था और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है। इन साधुओं की कठिन साधना और त्याग आम लोगों को आध्यात्मिक जीवन के गहरे संदेश देते हैं |
वे बिस्तर का उपयोग नहीं करते, कुटिया में रहते हैं और सांसारिक सुखों से दूर रहकर कठोर तपस्या करते हैं। महाकुंभ के दौरान, नागा साधुओं के दर्शन श्रद्धालुओं के लिए अद्वितीय अनुभव होते हैं।

Author: Sweta Sharma
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