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आरबीआई की मौद्रिक नीति बैठक शुरू

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिवसीय बैठक आज मुंबई में शुरू हो गई। इस बैठक में समिति के सदस्य मौजूदा आर्थिक परिदृश्य की गहन समीक्षा कर रहे हैं और इसके आधार पर रेपो रेट सहित अन्य प्रमुख नीतिगत दरों पर फैसला लेंगे।

1 अक्तूबर को होगी घोषणा

बैठक बुधवार, 1 अक्तूबर तक चलेगी। इसके बाद आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा सुबह 10 बजे बैठक के नतीजों की घोषणा करेंगे। माना जा रहा है कि समिति की चर्चा का केंद्र महंगाई पर नियंत्रण और आर्थिक विकास को गति देने के बीच संतुलन साधने पर रहेगा। इस फैसले पर बाजार, व्यवसाय जगत और नीति निर्माता सभी की नजरें टिकी हुई हैं क्योंकि इसका सीधा असर कर्ज की लागत और आर्थिक गतिविधियों पर पड़ता है।

पिछली बैठक और मौजूदा उम्मीदें

अगस्त 2025 में हुई पिछली बैठक में एमपीसी ने रेपो दर को 5.5 प्रतिशत पर यथावत रखा था। हालांकि, मौजूदा हालात में कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार कटौती की संभावना है।

एसबीआई और यूनियन बैंक की रिपोर्ट

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस बार एमपीसी रेपो दर में 25 आधार अंकों (बीपीएस) की कटौती कर सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मुद्रास्फीति नियंत्रण में है और आगे इसमें और गिरावट की संभावना है, इसलिए सितंबर में दर घटाना तर्कसंगत होगा।

इसी तरह, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने भी उम्मीद जताई है कि आरबीआई इस बैठक में दरों में 25 बीपीएस की कटौती कर सकता है। बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, यह कदम मुद्रास्फीति के घटते रुझान के चलते उठाया जा सकता है और इसे “बूस्टर कट” के रूप में देखा जाएगा।

मुद्रास्फीति पर असर और भविष्य की संभावनाएं

वित्त वर्ष 2025-26 के लिए महंगाई दर का अनुमान घटाकर लगभग 2.5 प्रतिशत कर दिया गया है, जिससे नीति समिति को दर घटाने की गुंजाइश मिली है। इसके अलावा, अक्तूबर 2025 से लागू होने वाले जीएसटी संशोधनों के कारण महंगाई पर लगभग 60 आधार अंकों का असर पड़ने की संभावना जताई गई है।

संवाद पर भी टिकी नजरें

विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार केवल रेपो दर ही नहीं, बल्कि समिति की भाषा और रुख भी महत्वपूर्ण होंगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यदि समिति “डोविश पॉज” यानी नरम रुख के साथ दरों को स्थिर रखती है तो इसका असर बांड बाजार और बैंकिंग क्षेत्र पर ज्यादा सकारात्मक हो सकता है, जबकि “हॉकिश कट” यानी कटौती के साथ सख्त संदेश का असर सीमित रहेगा।

कुल मिलाकर, 1 अक्तूबर को आने वाला फैसला भारतीय अर्थव्यवस्था, बांड बाजार और निवेशकों के लिए बेहद अहम साबित होगा।

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Author: ntuser1

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