कल्पवास का जिक्र पवित्र धर्म ग्रंथों जैसे रामचरितमानस और महाभारत में मिलता है। महाकुंभ के दौरान कल्पवास का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। मान्यताओं के अनुसार, कल्पवास करने से 100 वर्षों तक तप करने के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। यह व्रत पौष माह के 11वें दिन से आरंभ होकर माघ माह के 12वें दिन तक चलता है।
कल्पवास के दौरान सादगीपूर्ण जीवन जिया जाता है। व्रती सफेद और पीले वस्त्र धारण करते हैं। इस व्रत की अवधि एक रात से लेकर 12 वर्षों तक हो सकती है।
कल्पवास के नियम
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इंद्रियों को नियंत्रण में रखना।
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सत्य और अहिंसा का पालन करना।
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ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना।
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जीव-जंतुओं के प्रति दयाभाव रखना।
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प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में जागना और सही दिनचर्या का पालन करना।
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दिन में तीन बार स्नान करना।
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पितरों को आदर देते हुए पिंडदान करना।
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प्रतिदिन जप और ध्यान करना।
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दान करना और साधु-संन्यासियों की सेवा करना।
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दिन में केवल एक बार भोजन करना और धरती पर सोना।
कल्पवास का फल
कल्पवास के श्रद्धापूर्वक पालन से भक्तों को देवी-देवताओं और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। विवेक, बुद्धि का विकास और अलौकिक अनुभव भी मिलते हैं। यह व्रत भक्तों के जीवन में कई चमत्कारिक परिवर्तन लाता है और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
महाकुंभ के इस पवित्र व्रत से भक्तों का जीवन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना से भर उठता है।

Author: Sweta Sharma
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