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नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शताब्दी समारोह को संबोधित किया

निश्चय टाइम्स, डेस्क। नरेन्द्र मोदी ने आज नई दिल्ली स्थित डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया। इस अवसर पर सभी नागरिकों को नवरात्रि की शुभकामनाएं दीं और कहा कि आज महानवमी और देवी सिद्धिदात्री का दिन है। उन्होंने कहा कि कल विजयादशमी का महापर्व है, जो भारतीय संस्कृति के शाश्वत उद्घोष, अन्याय पर न्याय, असत्य पर सत्य और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि ऐसे ही पावन अवसर पर 100 वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी और कहा कि यह कोई संयोग नहीं है। उन्होंने कहा कि यह हजारों वर्षों से चली आ रही एक प्राचीन परंपरा का पुनरुद्धार है, जिसमें राष्ट्रीय चेतना प्रत्येक युग की चुनौतियों का सामना करने के लिए नए रूपों में प्रकट होती है। उन्होंने कहा कि इस युग में संघ उस शाश्वत राष्ट्रीय चेतना का एक सद्गुणी अवतार है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष का साक्षी बनना वर्तमान पीढ़ी के स्वयंसेवकों के लिए सौभाग्य की बात है। उन्होंने राष्ट्रसेवा के संकल्प में समर्पित असंख्य स्वयंसेवकों को अपनी शुभकामनाएं भी दीं। प्रधानमंत्री ने संघ के संस्थापक और पूज्यनीय आदर्श डॉ. हेडगेवार के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने घोषणा की कि संघ की गौरवशाली 100 वर्ष की यात्रा के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने एक विशेष डाक टिकट और स्मारक सिक्का जारी किया है। 100 रुपये के इस सिक्के पर एक ओर राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न तो दूसरी तरफ सिंह के साथ वरद मुद्रा में भारत माता की भव्य छवि अंकित है, जिन्हें स्वयंसेवकों द्वारा नमन किया जा रहा है। श्री मोदी ने रेखांकित किया कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में संभवतः यह पहली बार है, जब भारत माता की छवि भारतीय मुद्रा पर दिखाई दी है। उन्होंने कहा कि सिक्के पर संघ का मार्गदर्शक आदर्श वाक्य- “राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय, इदं न मम” भी अंकित है।

आज जारी किए गए स्मारक डाक टिकट के महत्व और इसकी असीम ऐतिहासिक प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने 26 जनवरी के गणतंत्र दिवस परेड के महत्व को याद किया और इस बात पर प्रकाश डाला कि 1963 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने देशभक्ति की धुनों पर ताल से ताल मिलाते हुए बड़े गर्व के साथ परेड में भाग लिया था। उन्होंने कहा कि यह डाक टिकट उस ऐतिहासिक क्षण की स्मृति को समेटे हुए है। इन स्मारक सिक्कों और डाक टिकट के जारी होने पर देशवासियों को हार्दिक बधाई देते हुए कहा, “यह स्मारक डाक टिकट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के अटूट समर्पण को भी दर्शाता है, जो राष्ट्र की सेवा और समाज को सशक्त बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं।” प्रधानमंत्री ने कहा कि जिस प्रकार महान नदियां अपने तटों पर मानव सभ्यताओं का पोषण करती हैं, उसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी असंख्य लोगों को पोषित और समृद्ध किया है। एक नदी जो अपनी निकटस्थ भूमि, गांवों और क्षेत्रों को पल्लवित और पोषित करते हुए बहती है और संघ, जिसने भारतीय समाज के हर कार्यक्षेत्र और राष्ट्र के हर क्षेत्र को छुआ है, के बीच तुलना करते हुए,प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि यह निरंतर समर्पण और एक शक्तिशाली राष्ट्रीय धारा का परिणाम है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और एक नदी की तुलना करते हुए, जो अनेक धाराओं में विभाजित होकर अलग-अलग क्षेत्रों को पोषित करती है, प्रधानमंत्री ने कहा कि संघ की यात्रा इसी का प्रतिबिंब है, जहां इसके विभिन्न सहयोगी संगठन जीवन के सभी पहलुओं- शिक्षा, कृषि, समाज कल्याण, जनजातीय उत्थान, महिला सशक्तिकरण, कला और विज्ञान तथा श्रम सेक्टर में राष्ट्र सेवा में संलग्न हैं। श्री मोदी ने रेखांकित किया कि संघ के अनेक धाराओं में विस्तार के बावजूद उनमें कभी विभाजन नहीं हुआ। प्रधानमंत्री ने कहा, “प्रत्येक धारा, विविध क्षेत्रों में कार्यरत प्रत्येक संगठन, एक ही उद्देश्य और भावनाः राष्ट्र प्रथम को साझा करता है।” प्रधानमंत्री ने कहा, “अपनी स्थापना के समय से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने महान उद्देश्य- राष्ट्र निर्माण को अपनाया है।” उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संघ ने राष्ट्रीय विकास की नींव के रूप में वैयक्तिक विकास का मार्ग चुना है। इस मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ने के लिए संघ ने एक अनुशासित कार्य पद्धति: शाखाओं का दैनिक और नियमित संचालन अपनाई है।

प्रधानमंत्री ने कहा, “पूज्य डॉ. हेडगेवार समझते थे कि राष्ट्र तभी वास्तविक रूप से सशक्त होगा जब प्रत्येक नागरिक अपने दायित्व के प्रति जागरूक होगा; भारत तभी उन्नति करेगा जब प्रत्येक नागरिक राष्ट्र के लिए जीना सीखेगा।” उन्होंने कहा कि इसीलिए डॉ. हेडगेवार अद्वितीय दृष्टिकोण अपनाते हुए लोगों के विकास के लिए प्रतिबद्ध रहे। श्री मोदी ने डॉ. हेडगेवार के मार्गदर्शक सिद्धांत को उद्धृत किया: “लोगों को वैसे ही स्वीकार करो जैसे वे हैं, उन्हें वैसा बनाओ, जैसा उन्हें होना चाहिए।” उन्होंने डॉ. हेडगेवार के जन-सम्पर्क के तरीके की तुलना एक कुम्हार से की, जो साधारण मिट्टी से शुरुआत करता है, उस पर लगन से काम करता है, उसे आकार देता है, पकाता है और अंततः ईंटों का उपयोग करके एक भव्य संरचना का निर्माण करता है। उसी तरह डॉ. हेडगेवार ने सामान्य व्यक्तियों का चयन किया, उन्हें प्रशिक्षित किया, दूरदृष्टि प्रदान की और राष्ट्र के लिए समर्पित स्वयंसेवकों के रूप में आकार दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि इसीलिए संघ के बारे में कहा जाता है कि वहां सामान्य लोग असाधारण और अभूतपूर्व कार्यों को पूरा करने के लिए एकजुट होते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में वैयक्तिक विकास की महान प्रक्रिया के निरंतर फलने-फूलने पर प्रकाश डालते हुए, श्री मोदी ने शाखा स्थल को प्रेरणा का एक पवित्र स्थल बताया, जहां एक स्वयंसेवक सामूहिक भावना का प्रतिनिधित्व करते हुए “मैं” से “हम” की ओर अपनी यात्रा आरंभ करता है। उन्होंने कहा कि ये शाखाएं चरित्र निर्माण की यज्ञ वेदी हैं, जो शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देती हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि शाखाओं के भीतर, राष्ट्र सेवा की भावना और साहस की जड़ें पनपती हैं, त्याग और समर्पण स्वाभाविक हो जाते हैं, व्यक्तिगत श्रेय की लालसा कम हो जाती है और स्वयंसेवक सामूहिक निर्णय लेने और टीमवर्क के मूल्यों को आत्मसात कर लेते हैं।

इस बात पर बल देते हुए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्ष की यात्रा तीन आधारभूत स्तंभों- राष्ट्र निर्माण की भव्य परिकल्पना, वैयक्तिक विकास का स्पष्ट मार्ग और शाखाओं के रूप में सरल किन्तु गतिशील कार्य पद्धति- पर आधारित रही है। श्री मोदी ने कहा कि इन स्तंभों के आधार पर संघ ने लाखों स्वयंसेवकों को तैयार किया है, जो समर्पण, सेवा और राष्ट्रीय उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्ध प्रयास के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्र को आगे बढ़ा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि अपनी स्थापना के बाद से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी प्राथमिकताओं को राष्ट्र की प्राथमिकताओं के साथ संयोजित किया है। उन्होंने कहा कि हर युग में संघ ने देश के सामने आने वाली बड़ी चुनौतियों का डटकर सामना किया है। स्वतंत्रता संग्राम का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि पूज्य डॉ. हेडगेवार और कई अन्य कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था और डॉ. हेडगेवार को कई बार कारावास भी भुगतना पड़ा था। प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि संघ ने अनेक स्वतंत्रता सेनानियों की सहायता की और उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। उन्होंने चिमूर में 1942 के आंदोलन का उदाहरण दिया, जहां कई स्वयंसेवकों ने ब्रिटिश शासन के भीषण अत्याचार सहे थे। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद भी संघ ने हैदराबाद में निजाम के उत्पीड़न का विरोध करने से लेकर गोवा और दादरा एवं नगर हवेली की मुक्ति में योगदान देने तक- बलिदान देना जारी रखा। पूरे आंदोलन में संघ की मूल भावना “राष्ट्र प्रथम” रही और उसका अटल लक्ष्य “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” रहा।

इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को राष्ट्रसेवा की अपनी यात्रा में अनेक आक्रमणों और षड्यंत्रों का सामना करना पड़ा है, श्री मोदी ने स्मरण किया कि कैसे स्वतंत्रता के बाद भी संघ को दबाने और उसे मुख्यधारा में शामिल होने से रोकने के प्रयास किए गए। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पूज्य गुरुजी को झूठे मामलों में फंसाकर जेल भेज दिया गया था। फिर भी रिहा होने पर गुरुजी ने अत्यंत धैर्य के साथ कहा, “कभी-कभी जीभ दांतों तले फंस जाती है और कुचल जाती है। लेकिन हम दांत नहीं तोड़ते, क्योंकि दांत और जीभ दोनों हमारी हैं।” प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि कठोर यातनाएं और विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न सहने के बावजूद गुरुजी ने किसी के प्रति कोई द्वेष या दुर्भावना नहीं रखी। उन्होंने गुरुजी के ऋषितुल्य व्यक्तित्व और वैचारिक स्पष्टता को प्रत्येक स्वयंसेवक के लिए एक मार्गदर्शक बताया, जो समाज के प्रति एकता और सहानुभूति के मूल्यों को सुदृढ़ करता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि चाहे प्रतिबंधों, षड्यंत्रों या झूठे मुकदमों का सामना करना पड़ा हो, स्वयंसेवकों ने कभी कटुता को स्थान नहीं दिया, क्योंकि वे समझते थे कि वे समाज से अलग नहीं हैं – समाज उनसे बना है, जो अच्छा है वह उनका है और जो कम अच्छा है, वह भी उनका ही है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कभी भी कटुता नहीं रखी, इसका एक प्रमुख कारण लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं में प्रत्येक स्वयंसेवक की अटूट आस्था है। उन्होंने आपातकाल के दौरान स्वयंसेवकों को सशक्त और प्रतिरोध करने की शक्ति प्रदान करने का स्मरण किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि समाज के साथ एकता और संवैधानिक संस्थाओं में आस्था, इन दो मूलभूत मूल्यों ने स्वयंसेवकों को हर संकट में धैर्यवान और सामाजिक आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील बनाए रखा है। समय के साथ अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए भी संघ एक विशाल वटवृक्ष की तरह अडिग रहकर राष्ट्र और समाज की निरंतर सेवा करता रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के समय से ही देशभक्ति और सेवा का पर्याय रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि विभाजन के कष्टदायक दौर में, जब लाखों परिवार विस्थापित हुए थे, स्वयंसेवक सीमित संसाधनों के बावजूद शरणार्थियों की सेवा में सबसे आगे खड़े रहे। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह केवल राहत कार्य नहीं था, बल्कि राष्ट्र की आत्मा को सुदृढ़ करने का कार्य था। प्रधानमंत्री ने 1956 में गुजरात के अंजार में आए विनाशकारी भूकंप का भी उल्लेख किया और व्यापक विनाश का वर्णन किया। उस समय भी स्वयंसेवक राहत और बचाव कार्यों में सक्रिय रूप से लगे हुए थे। उन्होंने बताया कि पूज्य गुरुजी ने गुजरात में संघ के तत्कालीन प्रमुख वकील साहब को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि दूसरों के दुख दूर करने के लिए निःस्वार्थ भाव से कष्ट सहना, एक नेक हृदय का प्रतीक है।

प्रधानमंत्री ने 1962 के युद्ध को याद करते हुए कहा, “दूसरों के दुखों को दूर करने के लिए कष्ट सहना प्रत्येक स्वयंसेवक की पहचान है।” उन्होंने कहा कि उस युद्ध में आरएसएस के स्वयंसेवकों ने सशस्त्र बलों की अथक सहायता की, उनका मनोबल बढ़ाया और सीमावर्ती गांवों तक सहायता पहुंचाई। प्रधानमंत्री ने 1971 के संकट का भी उल्लेख किया, जब पूर्वी पाकिस्तान से लाखों शरणार्थी बिना किसी आश्रय या संसाधन के भारत पहुंचे थे। उस कठिन समय में स्वयंसेवकों ने भोजन की व्यवस्था की, आश्रय प्रदान किया, स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कीं, उनके आंसू पोंछे और उनके दर्द को साझा किया। श्री मोदी ने कहा कि स्वयंसेवकों ने 1984 के दंगों के दौरान भी कई सिखों को शरण दी थी। यह स्मरण करते हुए कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम चित्रकूट में नानाजी देशमुख के आश्रम में होने वाले सेवा कार्यकलापों से बहुत हतप्रभ थे। प्रधानमंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी नागपुर की अपनी यात्रा के दौरान संघ के अनुशासन और सादगी से बहुत प्रभावित हुए थे।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आज भी, पंजाब में बाढ़, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में आई आपदाओं और केरल के वायनाड में हुई त्रासदी जैसी आपदाओं में, स्वयंसेवक सबसे पहले सहायता पहुंचाने वालों में से हैं। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान, पूरे विश्व ने संघ के साहस और सेवा भावना को प्रत्यक्ष रूप से देखा। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल देते हुए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्षों की यात्रा में उसका एक सबसे महत्वपूर्ण योगदान समाज के विभिन्न वर्गों में आत्म-जागरूकता और गौरव का संचार करना रहा है, कहा कि संघ ने देश के सबसे दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में विशेष रूप से देश के लगभग दस करोड़ जनजातीय भाइयों और बहनों के बीच, निरंतर कार्य किया है। जहां एक ओर सरकारें अक्सर इन समुदायों की उपेक्षा करती रहीं, वहीं संघ ने उनकी संस्कृति, त्योहारों, भाषाओं और परंपराओं को प्राथमिकता दी। सेवा भारती, विद्या भारती और वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन जनजातीय सशक्तिकरण के स्तंभ बनकर उभरे हैं। आज जनजातीय समुदायों में बढ़ता आत्मविश्वास उनके जीवन में बदलाव ला रहा है। देश के सुदूर इलाकों में जनजातीय समुदायों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए अथक परिश्रम कर रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लाखों स्वयंसेवकों की भरपूर सराहना करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि उनके समर्पण ने राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री ने उन चुनौतियों और शोषणकारी अभियानों का उल्लेख किया, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से जनजातीय क्षेत्रों को निशाना बनाया और इस बात पर जोर दिया कि संघ ने चुपचाप और दृढ़ता से अपना बलिदान दिया है और दशकों से राष्ट्र को ऐसे संकटों से बचाने के लिए अपना कर्तव्य निभाया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जाति आधारित भेदभाव और कुरीतियों जैसी गहरी जड़ें जमाए बैठी सामाजिक बुराइयां लंबे समय से हिंदू समाज के लिए गंभीर चुनौती रही हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस चुनौती के समाधान के लिए निरंतर कार्य किया है। वर्धा में एक संघ शिविर में महात्मा गांधी की यात्रा का स्मरण करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि गांधीजी ने संघ की समानता, करुणा और सद्भाव की भावना की खुले दिल से प्रशंसा की थी। उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार से लेकर आज तक संघ के प्रत्येक प्रतिष्ठित व्यक्ति और सरसंघचालक ने भेदभाव और छुआछूत के विरुद्ध लड़ाई लड़ी है। श्री मोदी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पूज्य गुरुजी ने निरंतर “न हिंदू पतितो भवेत्” की भावना को आगे बढ़ाया, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक हिंदू एक परिवार का हिस्सा है और कोई भी गौण या पतित नहीं है। उन्होंने पूज्य बालासाहेब देवरस को उद्धृत किया, जिन्होंने कहा था, “यदि छुआछूत पाप नहीं है, तो दुनिया में कुछ भी पाप नहीं है।” उन्होंने आगे कहा कि सरसंघचालक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, पूज्य रज्जू भैया और पूज्य सुदर्शन जी ने भी इसी भावना को आगे बढ़ाया। प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी ने समाज के सामने सामाजिक समरसता का एक स्पष्ट लक्ष्य रखा है, जो “एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान” के विजन में निहित है। उन्होंने कहा कि संघ ने इस संदेश को देश के कोने-कोने तक पहुंचाया है और भेदभाव, विभाजन और कलह से मुक्त समाज का निर्माण किया है। उन्होंने कहा कि यही समरसता और समावेशी समाज के संकल्प का आधार है, जिसे संघ नए उत्साह के साथ सुदृढ़ करता रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि एक सदी पहले जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी, उस समय की आवश्यकताएं और संघर्ष अलग थे। भारत सदियों पुरानी राजनीतिक पराधीनता से मुक्ति पाने और अपने सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के लिए प्रयासरत था। उन्होंने कहा कि आज, जब भारत एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है, तो चुनौतियां भी बदल गई हैं। आबादी का एक बड़ा हिस्सा निर्धनता से उबर रहा है, नए क्षेत्र युवाओं के लिए अवसर सृजित कर रहे हैं और भारत कूटनीति से लेकर जलवायु नीतियों तक वैश्विक स्तर पर अपनी आवाज बुलंद कर रहा है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि आज की चुनौतियों में दूसरे देशों पर आर्थिक निर्भरता, राष्ट्रीय एकता को तोड़ने की साजिशें और जनसांख्यिकीय हेरफेर शामिल हैं। प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि सरकार इन मुद्दों का शीघ्रता से समाधान कर रही है। एक स्वयंसेवक के रूप में, उन्होंने इस बात पर भी गर्व व्यक्त किया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने न केवल इन चुनौतियों की पहचान की है, बल्कि उनका सामना करने के लिए एक ठोस रोडमैप भी तैयार किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांच परिवर्तनकारी संकल्पों, आत्म-जागरूकता, सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, नागरिक अनुशासन और पर्यावरण चेतना को स्वयंसेवकों के लिए राष्ट्र के समक्ष उपस्थित चुनौतियों का सामना करने हेतु सशक्त प्रेरणा बताते हुए, श्री मोदी ने विस्तार से बताया कि आत्म-जागरूकता का अर्थ है दासता की मानसिकता से मुक्ति और अपनी विरासत तथा मातृभाषा पर गर्व करना। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आत्म-जागरूकता स्वदेशी को अपनाने का भी प्रतीक है। उन्होंने बल देकर कहा कि आत्मनिर्भरता अब एक विकल्प नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है। प्रधानमंत्री ने समाज से स्वदेशी के मंत्र को सामूहिक संकल्प के रूप में अपनाने का आह्वान किया और सभी से “वोकल फॉर लोकल” अभियान को सफल बनाने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा समर्पित करने का आग्रह किया।

प्रधानमंत्री ने कहा, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सामाजिक समरसता को सदैव प्राथमिकता दी है।” उन्होंने सामाजिक समरसता को समाज के वंचित लोगों को प्राथमिकता देकर सामाजिक न्याय की स्थापना और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के रूप में परिभाषित किया। श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आज राष्ट्र ऐसी चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो प्रत्यक्ष रूप से उसकी एकता, संस्कृति और सुरक्षा को प्रभावित करती हैं, जिनमें अलगाववादी विचारधाराओं और क्षेत्रवाद से लेकर जाति और भाषा के विवाद तथा बाहरी शक्तियों द्वारा भड़काई गई विभाजनकारी प्रवृत्तियां शामिल हैं। प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत की आत्मा हमेशा “विविधता में एकता” में निहित रही है, और चेतावनी दी कि अगर इस सिद्धांत को तोड़ा गया, तो भारत की शक्ति कम हो जाएगी। इसलिए उन्होंने इस आधारभूत लोकाचार को निरंतर सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज सामाजिक सद्भाव जनसांख्यिकीय हेरफेर और घुसपैठ से गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है, जिसका सीधा असर आंतरिक सुरक्षा और भविष्य की शांति पर पड़ रहा है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इसी चिंता के चलते उन्होंने लाल किले से डेमोग्राफी मिशन की घोषणा की। उन्होंने इस खतरे का सामना करने के लिए सतर्कता और दृढ़ कार्रवाई का आह्वान किया।

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Author: ntuser1

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