पाकिस्तान के अशांत उत्तर-पश्चिमी कुर्रम आदिवासी जिले में एक भूमि विवाद ने सांप्रदायिक हिंसा पैदा कर दी है। इस छोटे से टुकड़े को लेकर हो रही लड़ाई ने सुन्नी और शिया जनजातियों के बीच खूनी संघर्ष बढ़ा दिया है। 24 जुलाई को शुरू हुए संघर्ष के बाद अब तक 43 लोग मारे जा चुके है और 200 से अधिक लोग घायल हुए है।
जनजातीय जिरगा की मदद से हुआ युद्ध विराम
बीबीसी की एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय जनजातीय जिरगा की सहायता और समर्थन से युद्धरत जनजातियों ने सोमवार को अस्थायी युद्ध विराम की घोषणा की। अस्थिर पहाड़ी कुर्रम क्षेत्र में पिछले कई दशकों में जनजातियों और धार्मिक समूहों के बीच सांप्रदायिक झड़पें और आतंकवादी हमले हुए हैं। सरकार के गृह और आदिवासी मामलों के विभाग के अनुसार, वर्तमान में कुर्रम में आठ बड़े संघर्ष देखने को मिले।
शिया और सुन्नी के दो परिवारों की लड़ाई कैसे बनी युद्ध की जंग
पिछले सप्ताह शिया और सुन्नी के दो परिवारों के बीच एक संपत्ति के स्वामित्व को लेकर खूनी लड़ाई शुरू हुई थी। यह दुश्मनी तेजी से कई गांवों और बस्तियों में फैल गई जिसके बाद पूरे जिले में हिंसा होने लगी। अधिकारियों ने बताया कि मृतकों में 34 शिया जनजाति के और आठ सुन्नी जनजाति से थे।
कुर्रम के मकबल और टेरी मंगल इलाकों में, रविवार रात और सोमवार सुबह तक शिया और सुन्नी जनजातियों के बीच गोलीबारी जारी रही। स्थानीय लोगों के अनुसार, क्षेत्र में सुन्नी जनजातियों को सीमा पार से समर्थन मिल रहा है क्योंकि ये परिवार पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच विवादित सीमा डूरंड रेखा के दोनों ओर रहते हैं।
भोजन और दवाओं की कमी
क्षेत्र के अधिकांश गांवों में संघर्ष और अशांति को रोकने के लिए सड़कें बंद कर दी गई है। हालांकि, इसके कारण खाने और दवाओं की कमी का लोगों को सामना करना पड़ रहा है।

Author: Sweta Sharma
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