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बिहार की भूमि भारत की दार्शनिक नींव का जन्मस्थल-उपराष्ट्रपति

बुद्ध, महावीर और डॉ राजेन्द्र प्रसाद की विरासत का संगम है बिहार
ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड और कैम्ब्रिज को मिला लें तो भी नालंदा की बराबरी नहीं हो सकती
चंपारण केवल एक सत्याग्रह नहीं था, वह राष्ट्र-निर्माण की नई व्याकरण की शुरुआत थी
आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय था

हमें जयप्रकाश नारायण जैसी विभूतियों को सदैव स्मरण रखना होगा — उपराष्ट्रपति

निश्चय टाइम्स, डेस्क। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज बिहार की गौरवशाली ऐतिहासिक, बौद्धिक और संवैधानिक विरासत को स्मरण करते हुए कहा कि , “यह केवल एक राज्य नहीं, यह भारत की आत्मा है, जहाँ बुद्ध और महावीर का बोध, चंपारण का प्रतिरोध और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का संविधान निर्माण, सब एक ही धरातल पर मिलते हैं।”
राज्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बोलते हुए धनखड़ ने कहा, “हम अक्सर दिमाग की सुनते हैं, दिल की सुनते हैं, पर हमें आत्मा की भी सुननी चाहिए। और बिहार की भूमि इसके लिए प्रेरणा का स्त्रोत है, यह वही भूमि है जहां बुद्ध को ज्ञान मिला, यही भूमि है जहां महावीर को आत्मिक जागरण हुआ — यही भूमि भारत की दार्शनिक नींव का जन्मस्थल है।” उन्होंने कहा, “बिहार वह भूमि है जहाँ प्राचीन ज्ञान, सामाजिक न्याय और आधुनिक आकांक्षाएं साथ-साथ चलती हैं। बिहार की कथा, भारत की कथा है — और यही वह यात्रा है, जो भारत को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिलाएगी। जब आज़ादी की बात होती है, तो चंपारण सत्याग्रह का उल्लेख अनिवार्य है, जो बिहार की पवित्र भूमि पर हुआ था। 1917 में महात्मा गांधी जी ने अपना पहला सत्याग्रह आंदोलन चंपारण में शुरू किया। उन्होंने किसान की समस्या को राष्ट्रहित का आंदोलन बना दिया। चंपारण ने केवल औपनिवेशिक अन्याय को चुनौती नहीं दी, बल्कि शासन की एक नई व्याकरण की शुरुआत की — जो सत्य, गरिमा और निडर सेवा पर आधारित थी। ”
बिहार के मुज़फ्फरपुर स्थित ललित नारायण मिश्रा कॉलेज ऑफ बिज़नेस मैनेजमेंट के स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह में जनसभा को संबोधित करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि, “बिहार प्राचीन समय में वैश्विक शिक्षा का केंद्र था — नालंदा, विक्रमशिला और ओदांतपुरी — ये केवल विश्वविद्यालय नहीं थे, ये सभ्यता थे। पाँचवीं शताब्दी में नालंदा एक रेजिडेंशियल यूनिवर्सिटी थी, जहाँ चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत और मध्य एशिया से लोग ज्ञान अर्जित करने आते थे। वहाँ 10,000 विद्यार्थी और 2,000 आचार्य रहते थे। यह तीनों संस्थान हमारे लिए हमेशा प्रेरणा रहेंगे कि हम कहाँ थे और हमें कहाँ पहुँचना है। आज भी ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड और कैम्ब्रिज को मिला लें, तो नालंदा की बराबरी नहीं हो सकती।”

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Author: ntuser1

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