कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने अपनी नई किताब ‘अ मैवरिक इन पॉलिटिक्स’ में बड़ा दावा किया है। उन्होंने लिखा है कि 2012 में राष्ट्रपति पद खाली होने के दौरान प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए था और मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति। अय्यर का मानना है कि उस समय कांग्रेस के इस निर्णय ने तीसरी बार यूपीए सरकार के गठन की संभावनाओं को समाप्त कर दिया।
क्या कहा अय्यर ने?
अय्यर ने लिखा, “2012 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कई बार कोरोनरी बाईपास सर्जरी से गुजरना पड़ा, जिससे उनकी कार्य क्षमता प्रभावित हुई। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी उस समय बीमार थीं, और पार्टी ने इस पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया। इस स्थिति के कारण शासन की गति धीमी हो गई और कई बड़े संकटों का सामना प्रभावी ढंग से नहीं किया जा सका।”
उन्होंने अन्ना हजारे के ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ आंदोलन का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय सरकार प्रभावी प्रतिक्रिया देने में असफल रही।
प्रणब और मनमोहन की अदला-बदली का सुझाव
अय्यर ने किताब में लिखा, “जब 2012 में राष्ट्रपति पद खाली हुआ, तो मेरा व्यक्तिगत मानना था कि प्रणब मुखर्जी को सरकार की बागडोर सौंपी जानी चाहिए थी और मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए था।”
उनका तर्क है कि इस निर्णय से सरकार की रुकावट की स्थिति को टाला जा सकता था और यूपीए-III के गठन की संभावनाएं भी बढ़ सकती थीं।
किताब में राजनीति के कई पहलुओं का जिक्र
83 वर्षीय मणिशंकर अय्यर ने अपनी इस किताब में राजनीति में अपने शुरुआती दिनों, नरसिम्हा राव के शासनकाल, यूपीए-I सरकार में मंत्री के तौर पर अपने अनुभव, राज्यसभा के कार्यकाल और कांग्रेस में अपनी स्थिति के पतन का जिक्र किया है।
क्या थे 2012 के हालात?
2012 में मनमोहन सिंह की सेहत खराब थी और कांग्रेस के भीतर नेतृत्व की धीमी कार्यप्रणाली की आलोचना हो रही थी। प्रणब मुखर्जी उस समय यूपीए सरकार के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक थे। लेकिन उन्हें राष्ट्रपति भवन भेज दिया गया।
अय्यर का बयान चर्चा में
मणिशंकर अय्यर के इस बयान से एक बार फिर कांग्रेस के उस दौर की रणनीतियों और निर्णयों पर सवाल उठ रहे हैं। यह किताब कांग्रेस के अंदरूनी हालात और नेतृत्व की कमजोरियों को सामने लाती है, जो भविष्य में पार्टी के लिए आत्ममंथन का कारण बन सकती है।
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Author: Sweta Sharma
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